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Monday 26 November 2012

बंधन

आवरण चहुँ  ओर का,
क्यों बांधता है मुझे,
क्यों घेरता है मुझे,
सीमित दायरों  के 
बन्धनों में,
और समय के 
साथ साथ 
मेरे देश के ,
मेरे धर्म के ,
मेरी जाति  के ,
मेरे कर्म के ,
बन्धनो में 
जकड़ता जाता है,
ये बंधन जो पोषक है,
नफरतों का,द्वेष का,
विभाजित परिवेश का ,
जो बांटता है,
खुदा से भगवान् को,
इंसान से इंसान को,
इस जमीं
और आसमान को,
काश मेरा स्वप्न भी
साकार हो ,
सार्वभौमिक समग्र
संसार हो,

पंख फैलें जब कभी
उड़ान को,
न कहीं कोई भी
दीवार हो।



Sunday 18 November 2012

तरसती ज़िन्दगी

मैं पिछले दिनों अपने गाँव पारसपट्टी जो सुल्तानपुर जनपद में हैं गया था, अपने खेत के किनारे खड़ा था कि ,पड़ोस के घर से एक नवजात की चीख लगातार कानों में पड़ रही थी,मैं कारण जानने की उत्सुकता में उस घर की और चल पड़ा, बाहर ही एक खटिया पर गंदे बिछौने में वह नवजात जोर जोर से चिल्ला रहा था और एक किशोरी उसे चुप करा रही थी। मैंने उस किशोरी से कहा,इसकी माँ को बोलो इसे चुप कराये,इतना कहना था कि किशोरी भी फफक कर रोने लगी, मैंने अपने आपको संभाल कर फिर से जानना चाहा की क्या घर में कोई बड़ा नहीं है,तो उस किशोरी ने बताया की बाबू (पिता ) हैं,बाज़ार गए हैं दवाई लेने,तो इसकी माँ ........उसने जवाब दिया वोह दो दिन पहले इस बच्चे को जन्म देने के बाद मर गयी।
बाद में विस्तार से पूंछने पर पता चला कि ये श्रीराम नाम के एक दलित का घर है,उसकी पुत्रवधू घर पर ही बच्चे को जन्म देने के दो घंटे बाद मर गयी .....मेरे मन में ढेरों सवाल गूंजने लगे ,सरकार जननी सुरक्षा योजना चलाती है,हर गाँव में आशा बहू नियुक्त है,कहने को मुफ्त एम्बुलेंस सेवा प्रदान करती है,इन सेवाओं से जुड़े व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए अक्सर आन्दोलन करते हैं पर क्या अपने कर्तव्यों का बोध उन्हें है? इस गरीब को ये सहायताएं क्यों नहीं मिली ....इतने में घर मालिक श्रीराम भी आ गए ,मैंने पूंछा की तुमने घर में प्रसव क्यों कराया ...अस्पताल की मदद क्यों नहीं ली ...वह हाथ जोड़ कर बोला ...हमारे जैसे की कोई सुनवाई नहीं होती ....न कभी आशा ने पूंछा न A N M ने ...हमारे नसीब में ऐसे ही मरना लिखा है .....भला विकास की कौन सी लहर समाज के अंतिम व्यक्ति तक भी पहुंचेगी? N R H M योजनाओं में सेंध लगा कर अपनी तिजोरी भरने वाले ऐसे लोगों की हत्या के दोषी है ............

Friday 16 November 2012

बेहतर है भूल जाना
छू  लेना आसमां ,
गर उड़ना ही होता
तो पंख मिले होते,
पत्थर के दिलों में
जरा भी नमीं होती,
 तो हर बाग़ में
 पत्थर के फूल खिले होते।


Saturday 3 November 2012

सातवाँ सिलेण्डर

सात समुंदर पार करके  सात फेरे लेने के बाद सातवें सिलेण्डर ने सातों आसमान दिखा दिए हैं,याद करके किसी बड़े माफिया द्वारा  जान से मारने  की दी जाने वाली धमकी भी कमजोर लगती है,ऊपर से KYC का भूत बाहें फैलाये खड़ा है, मैं भी हाल जानने के लिए जब तीन घंटे लाइन  में लगने के बाद पहुंचा तो मेरे हिस्से के सारे सिलेण्डर लाइन लगा कर मेरा मजाक उड़ाने की फिराक में खड़े थे, सबसे पहला सिलेण्डर अपनी गोल गोल आँखें मटकाते हुए मुझसे पूंछता है,क्यों राजा,KYC हो चुकी है,या ऐसे ही ...मैंने बड़े अपराध भाव से सिर हिलाया ,दूसरा सिलेण्डर पहले के पीछे खड़ा था इसलिए पहले को खोद खोद कर मेरा मजाक उड़ाने को उकसा रहा था, इतने में तीसरा तपाक से बोला,सुनिए......अब आप मुझे अपनी किचन के साफ़ सुथरे हिस्से में ही रखेंगे,पहले की तरह अपनी खटारा कार की डिक्की धक्के खाने के लिए नहीं रख पाएंगे। मुझे अपनी कंजूसी और मजबूरी पर बहुत शर्म आ रही थी।जेब में हाथ डाले आस पास देखने लगा तो चौथे ने भी मिलकर हँसना शरू कर दिया,मैंने पांचवे से कहा,तुम बड़े शरीफ लग रहे हो, चुप चाप जो खड़े हो, तब वह बोला की मैं बाल बाल बच  गया ,बस एक नंबर से...नहीं तो छठा सिलेण्डर बन जाता। मैं कुछ समझ पाता  इससे पहले मेरी नज़र छठे सिलेण्डर पर पड़ी ,वह बेचारा दीन  हीन दशा में खड़ा था, हाथ जोड़कर मेरे सामने खड़ा होकर बोला,मैं अभागा सबसे ज्यादा मारा और गरियाया जाऊँगा,मेरा जब और तब दम घोटा जाएगा, मैंने उसे भरोसा दिलाया की कसम छठे सिलेण्डर की तुम्हें उलट पुलट कर काम चलाएंगे पर तुम्हें नहीं मरने देंगे,इतना सुनकर वो और जोर जोर से रोने लगा,उतने में मैंने देखा की अपनी कालर कड़ी किये सातवाँ सिलेंडर मुझे घूर घूर कर देख रहा था,उसका चेहरा देखने लायक था,लग रहा था की जय पाल  रेड्डी से उसकी तगड़ी जान पहचान  है,उसका रोब दाब  जेल में बंद माफिया से कम नहीं था,उसके लिए स्पेशल A C ,नौकर चाकर सभी  दिव्य व्यवस्थाएं  थी,मैंने मन में ठान लिया लिया कि  तुमको अपने घर नहीं ले जाऊँगा, मैं चुप चाप लौटने लगा तो सातवाँ सिलेण्डर मझे धमकाते हुए दहाड़ कर चुनौतीपूर्ण लहजे में बोला,मुझसे बच  नहीं सकते, मैं तुम्हारी पेंट और जेब दोनों ढीली कर दूंगा...याद रखना मैं सातवाँ सिलेण्डर हूँ  ...............

Friday 2 November 2012

मुक़द्दर



जीवन के हर मोड़ पर
मुक़द्दरों को छोड़ कर
जब कोई नया मुकाम आया

कौन अपने काम आया ?
हमसफ़र जो थे बने 
कुछ दूर तक तो साथ थे,
जो बने हमदर्द
उनके दर्द ही बस पास थे,
उम्र के के इस मोड़ पर,
ज़िन्दगी के छोर पर,
धड़कनों को छोड़ कर ,
कौन अपने साथ आया?
जीवन के हर मोड़ पर
मुक़द्दरों को छोड़ कर
जब कोई नया मुकाम आया
कौन अपने काम आया ?












Wednesday 31 October 2012

daideeptya : आज चौक फैजाबाद से गुज़रने का मौका मिला,भारी भीड़ में...

daideeptya : आज चौक फैजाबाद से गुज़रने का मौका मिला,भारी भीड़ में...: आज चौक फैजाबाद से गुज़रने का मौका मिला,भारी भीड़ में जो कुछ भी देखने को मिला सचमुच भयावह था, "कल चमन था आज एक सेहरा हुआ देखते ही देखते ये क्य...
आज चौक फैजाबाद से गुज़रने का मौका मिला,भारी भीड़ में जो कुछ भी देखने को मिला सचमुच भयावह था, "कल चमन था आज एक सेहरा हुआ देखते ही देखते ये क्या हुआ............." गीत की पंक्तियाँ याद आ रही थी,मायूश दुकानदार अपनी अपनी दुकानों का मलबा बाहर निकाल रहे थे तो कोई सन्न मरे हाथ बंधे अपनी दूकान के आगे बैठा था। ये वही  चौक था जहाँ न जाने कितने ही धार्मिक आयोजन होते ही रहते हैं और कभी भी धार्मिक उन्माद देखने को नहीं मिला।. बड़े दुकानदारों के पास मान लो कुछ पूँजी तो होगी ही,पर उनका क्या जो छोटी सी तनख्वाह पर उन दुकानों पर काम करते थे और परिवार की गाड़ी चलाते थे ,उन पर तो मानो समस्याओं का पहाड़ टूट पड़ा। सबसे ज्यादा असर आने वाले समय पर पर पड़ेगा,क्योंकि नफरत का जो सर्प ज़हर उगल कर चला गया है,उसकी लकीर को पीट कर अपनी सियासी रोटियां सेकने  वालों की कमी नहीं है, वे लोग बार बार सामान्य हो रहे हालात पर सन्देह का पर्दा डालने की कोशिश करते रहेंगे। कुछ भी हो एक सभ्य समाज के लिए इस तरह की घटनाएँ निंदनीय हैं।

Tuesday 30 October 2012

जल उठा फैजाबाद

हालात अंगड़ाई ले रहे हैं फिर से रफ़्तार पकड़ने के लिए ,कुछ लफंगों के करतूतों ने जैसे सभ्यता को कलंकित कर दिया,सांप  के निकल जाने के बाद लकीर पीटना फालतू और सियासतबाज़ों का काम है,आम आदमी को सबसे पहले अपनी कमाई और काम  की चिंता है. आपसी सोहार्द की जड़ें गहरी हैं , फिर से  ज़िन्दगी रफ़्तार पकड़ेगी और फिजां की कड़वाहट कम होगी , आपसी भाईचारे की मिशाल के ढेरों उदाहरण इस जुड़वाँ शहर को गौरवान्वित करते आये हैं और करते रहेंगे बस जरा से धैर्य और संयम की जरूरत है।

Sunday 28 October 2012

जल उठा फैजाबाद !

चुप भी रहो
अब बंद करो
अपनी सियासी
बदजुबानी,
क्या हुआ
कैसे हुआ
सब जानते है,
ये भी जानते हैं
कि तुम्हारी नीयत
और नज़र में
खोट है,
क्या हिन्दू
क्या मुस्लिम
इंसान न होकर,

तुम्हारी नज़र में
बस
एक वोट है।

Friday 26 October 2012

रावन

वो तो एक रावन था,
सचमुच बड़ा ही ज़ालिम था,
किन्तु परम ज्ञानी था,
हाँ बहुत अभिमानी था,
अभिमान था उसे
अपनी शक्ति पर

अपनी भक्ति पर,
अपनी एक गलती पर
राम के हाथों मारा गया,
फिर हर वर्ष जलाया गया,
आज कितने ही रावन हैं,
न शक्ति है
न भक्ति है
न ज्ञान है
परन्तु बड़ा अभिमान है,
हे राम...वो तो एक था,
और वो भी मर गया.....