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Sunday 18 November 2012

तरसती ज़िन्दगी

मैं पिछले दिनों अपने गाँव पारसपट्टी जो सुल्तानपुर जनपद में हैं गया था, अपने खेत के किनारे खड़ा था कि ,पड़ोस के घर से एक नवजात की चीख लगातार कानों में पड़ रही थी,मैं कारण जानने की उत्सुकता में उस घर की और चल पड़ा, बाहर ही एक खटिया पर गंदे बिछौने में वह नवजात जोर जोर से चिल्ला रहा था और एक किशोरी उसे चुप करा रही थी। मैंने उस किशोरी से कहा,इसकी माँ को बोलो इसे चुप कराये,इतना कहना था कि किशोरी भी फफक कर रोने लगी, मैंने अपने आपको संभाल कर फिर से जानना चाहा की क्या घर में कोई बड़ा नहीं है,तो उस किशोरी ने बताया की बाबू (पिता ) हैं,बाज़ार गए हैं दवाई लेने,तो इसकी माँ ........उसने जवाब दिया वोह दो दिन पहले इस बच्चे को जन्म देने के बाद मर गयी।
बाद में विस्तार से पूंछने पर पता चला कि ये श्रीराम नाम के एक दलित का घर है,उसकी पुत्रवधू घर पर ही बच्चे को जन्म देने के दो घंटे बाद मर गयी .....मेरे मन में ढेरों सवाल गूंजने लगे ,सरकार जननी सुरक्षा योजना चलाती है,हर गाँव में आशा बहू नियुक्त है,कहने को मुफ्त एम्बुलेंस सेवा प्रदान करती है,इन सेवाओं से जुड़े व्यक्ति अपने अधिकारों के लिए अक्सर आन्दोलन करते हैं पर क्या अपने कर्तव्यों का बोध उन्हें है? इस गरीब को ये सहायताएं क्यों नहीं मिली ....इतने में घर मालिक श्रीराम भी आ गए ,मैंने पूंछा की तुमने घर में प्रसव क्यों कराया ...अस्पताल की मदद क्यों नहीं ली ...वह हाथ जोड़ कर बोला ...हमारे जैसे की कोई सुनवाई नहीं होती ....न कभी आशा ने पूंछा न A N M ने ...हमारे नसीब में ऐसे ही मरना लिखा है .....भला विकास की कौन सी लहर समाज के अंतिम व्यक्ति तक भी पहुंचेगी? N R H M योजनाओं में सेंध लगा कर अपनी तिजोरी भरने वाले ऐसे लोगों की हत्या के दोषी है ............

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