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Saturday 27 December 2014

आशा

अनुकूल होती हैं
परिस्तिथियाँ भी साहस से
भंवर ये रोक नहीं सकते
तुझे उस पार जाने से
प्रवाहों की दिशाएं
खुद ब खुद बदल ही जाएँगी
उजालों की किरण
तुझे अंधेरों से बुलाएंगी
न कर भरोसा भाग्य पर
हर पल ये तेरा है
जिन्दा नहीं हैं वो
जिन्हें निराशा ने घेरा है
तपते हौसलों से और
कई पत्थर गलाने हैं
तेरे बुझने से पहले
तुझसे कई दीपक जलाने हैं
:- अनिल कुमार सिंह

आज के मजनू : -

आज के मजनू : -
लैला मजनू की, मजनू लैला का दीवाना था ,
इस किस्से का ज़माना बड़ा पुराना था,
सच यह हैं वो आशिकी का खुदा हो गया ,
किन्तु उसके चेलों का अंदाज़ जुदा हो गया,
अब तो एक नहीं कई मज़नू नज़र आते हैं ,
सभी चौराहों,नुक्कड़ों के आस पास मिल जाते हैं ,
नाऊ की दुकानों पर पैदा होते हैं ये मज़नू
चाय की दुकानों तक सिमट कर रह जाते हैं,
जेब से झांकता कंघा ,और गले में रूमाल
कान में ईयर फोन और मंद मंद चाल ,
डोलते फिरते हैं खुद को मज़नू का चेला समझ कर,
जताते हैं सबसे प्यार अपनी लैला समझ कर ,
ये भी नाम लिख कर मिटाते हैं हाथों से ,
असल में होश आता है दरोगा की लातों से,
नेक क़दमों से जो चले वे मंज़िल को पाते हैं
ये बेचारे वहीँ के वहीँ खड़े रह जाते है। ......

अनिल कुमार सिंह

मन की बात

निर्द्वन्द्व हैं निरपेक्ष हैं ,शब्दों को नहीं तौलता हूँ ,
शेष नहीं कुछ भी अंतर में, राज़ सारे खोलता हूँ,
मैं हृदय  से बोलता हूँ  .
जो मिला अपना लगा,जो न मिला सपना लगा,
आनंद में एकांत था,आपात में भी शांत था,
साथ निराकार था,जो मिला अपार था,
सपना मेरा साकार था.
वेग के परिवेश में,अपने भावावेश में,
जल कर  कुछ न शेष था,न न्यून मात्र द्वेष था ,
न मन में कोई बात थी ,फिर नयी एक रात थी,
वो तो कल की बात थी। 

अनिल  कुमार सिंह