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Sunday 31 May 2015

मंगरू चाचा बाराती



            मंगरू चाचा आज बहुत खुश थे ,सुबह सुबह नाऊ को बुला कर दाढ़ी –बाल बनवा लिए थे, दुवारे वाले आम की दो टहनियों से बंधी  उनकी धुली और नील लगी धोती सूख रही थी , छोटकी पतोह से  कह कर बक्शे  में पड़ा सिल्क का कुर्ता निकलवा कर इस्त्री करवा  लिए थे । आज गाँव के साहू सेठ के लड़के की बारात जाना था , अक्सर लोग उन्हें बुजुर्ग समझ कर बारात जाने का आग्रह नहीं किया करते थे , इस बार साहू सेठ  के इकलौते बेटे की शादी में साहू सेठ ने उन्हें घर पर आ कर विशेष बुलव्वा दिया था । अपने भतीजे नवीन को अपने साथ चलने को मना चुके थे , नवीन के कई हमउम्र दोस्त भी बारात में जा रहे थे , दोपहर का खाने में पतोह से दो करछुल दाल भात लाने को कहे ताकि दिन में पेट हल्का रहे , सेठ की बारात है ,आगे बहुत कुछ खाना पड़ेगा । दिन के चार बजे साइकिल बैंड की आवाज सुनते ही फटाफट अपने धोती बांध ,सिल्क का कुर्ता धारण कर , नया वाला गमछा करीने से कंधे पर डाल लिए और हाथ में कुबरी लेकर नवीन - नवीन पुकारने लगे । नवीन उनकी आवाज सुनकर दौड़ा दौड़ा आया और कहने लगा ,”बड़का बाबू अभी आराम करिए बारात जाने में अभी टाइम है ,हम आपको खुद लेने चले आएंगे” , मंगरू चचा ने फटकार लगाई “ “अरे कुछ देर पहले जाए से का कुच्छ घट जाए ,दुवारे की शोभा होता है बाराती” । ऐसा कह कर तुरंत नवीन को साथ लिए अपने तेज़ कदमों से सेठ के दरवाजे पहुँच गए मंगरू चाचा , उन्हें बड़े आदर के साथ बैठाया गया ,मीठे के साथ जल का सेवन कर मंगरू चाचा चुपचाप बारात चलने  का इंतज़ार करने लगे ।  बारात को जहां जाना था वह मात्र आधे घंटे का रास्ता था । धूप अपनी जगह बदल रही थी तो मंगरू चाचा की कुर्सी भी चिलबिल के पेड़ के नीचे छायानुसार अपनी जगह बदल रही थी , सेठ के घर बारात चलने  से पूर्व की पूजा पाठ चल रही थी । नवीन अपने दोस्तों में मस्त था ,चाचा आराम से बैठ आने जाने वाले लोगों से अभिवादन स्वीकार कर रहे थे । बारात जाने वाली गाड़ियों का आना शुरू हो चुका था , हलचल से बारात रवाना होने का अंदाज़ा होने पर नवीन उनके पास आया और अपने साथ एक बोलेरों की फ्रंट सीट पर अपने बड़के बाबू को बैठा दिया और खुद पीछे बैठ गया , देहाती गानों को आनंद लेते हुये कुछ ही देर में बारात गंतव्य पर पहुँच गई । 
          जनवासे में मंगरू चाचा को एक चारपाई पर बैठाया गया ,एक-एक कर गाडियाँ आती गई और जनवासा भर गया ,मंगरू चाचा की बेचैनी बारात को देख कर बढ़ गई , नवीन को बुला कर पूंछते हैं ,कि बारात में इतनी सारी महिलाएं कौन हैं? नवीन ने बताया कि  महिलाएं सब सेठ जी के घर की हैं , मगरू चाचा के  मन की आशाओं पर जैसे कुठराघात हुआ , बारात में घर की महिलाएं ? इसका मतलब बाहरी महिलाओं का नाच देखने को नहीं मिलेगा... जमाना बदल गया है ,मन ही मन बातें करते चाचा बार बार अपनी  मूंछों को ताव दिये जा रहे थे, अपने गमछा भी बार बार दुरुस्त कर रहे थे । जनवासे में आई मिठाई को उन्होने नवीन को दे दिया  , गौर से सभी बरातियों को देख कर पहचानने कि कोशिश करते ,किसी को बुला कर उसका और उसके परिवार का हालचाल लेते ,कभी शामियाने को और उसकी सजावट को गौर से निहारते ,खर्चे का अंदाज़ा लगाते और अपनी चुनौटी  से सुर्ती बना उसका रसास्वादन करने लगते । 
                 स्वागत सत्कार के बाद डी जे अपनी कान फाड़ू आवाज और चमचमाती लाइटों के साथ बारात रवानगी के लिए तैयार था।  सेठ जी के आग्रह पर सब अपनी अपनी चारपाई  छोड़ कर अपने अपने कपड़े संभालते बारात के लिए डी जे के पीछे जा खड़े हुये।  दूल्हे की कार बरातियों के सबसे पीछे थी।   मंगरू चाचा भी अपनी कुबरी लिए धोती गमछा संभालते बरातियों के साथ थे। डी जे बजना शुरू हो गया , द्वीअर्थी भोजपुरी गानो के साथ साथ ठुमकों  का दौर ज़ोर पकड़ने लगा , सभी पर धमाकेदार संगीत का असर दिख रहा था ,तरह तरह के डांस देख मंगरू चाचा के आँखों की चमक बढ़ गई, जोश का संचरण होने लगा , नवीन को अपनी कुबरी पकड़ा कर ,गमछे को कमर से टाइट बांध कर मैदान में कूद पड़े ,उन्हे देखने वालों की भीड़ चारों तरफ टूट पड़ी , वीडियो कैमरा वाला डी जे की गाड़ी पर लगे स्पीकर पर चढ़ कर मंगरू चाचा के जबर्दस्त नाच का वीडियो बना रहा था ,तभी एक महिला ने आकर मगरू चाचा का हाथ , साथ में  नाचने के लिए पकड़ लिया  इतने गरम माहौल में इतने वर्षों के बाद महिला का  स्पर्श  मंगरू चाचा के लिए 440 वोल्ट के झटके से कम नहीं था , हाथ पाव सुन्न पड़  गए जैसे साँप सूंघ गया हो ,जोश ठंडा हो गया और झटके से हाथ छुड़ाते ही माहौल में ठहाका गूंज गया । तुरंत नवीन से अपनी कुबरी ले अलग खड़े हो गए ,सभी के बहुत आग्रह पर भी टस्स से मस्स नहीं हुये , किन्तु बारात का मंच कहाँ खाली रहता है , नृत्य ,नर्तक ,संगीत सब कुछ बदलता रहता है और मंच सबके साथ - साथ चलता रहता है । एक महिला के मैदान में आते ही महिलाओं की संख्या प्रबल हो गई , मंगरू चाचा के लिए यह अनोखा अवसर था ,वे आँख फाड़े महिलाओं के डांस को देख रहे थे ,बार-बार नवीन से किरदारों की जानकारी भी ले लेते और कहते , “भला घरे क महरारून क बारात में नाच ,ई कौन सभ्यता है ” ,पर नज़रें लगातार उसी चलते फिरते मंच पर टिकी हुयी थीं। बारात के दरवाजे पर पहुँचने पर मंगरू चाचा ने मुह में भरी सुर्ती को थूक दिया और साहू सेठ के साथ सम्मानजनक तरीके से द्वार-पूजा पर आसन लगा बैठ गए, वहाँ पर उन्होने नेग चार और जलपान ग्रहण किया ,पूजा के समाप्त होने पर बड़ी मुश्किल से हाथों के सहारे खड़े हुये ,  नाचने की वजह स पैरों में जकड़न थी ,पीछे मुड़ कर देखा तो उनका एक पैर का  जूता ही गायब था , झाल , बंसवारी सब  जगह ढूंढा गया पर जाने कहाँ चला गया ,बेचारे मंगरू चाचा नंगे पाँव हो गए । बड़े ज़ोर की भूख लगी थी सुबह से यही सोचकर कि बारात में व्यंजनों का स्वाद लिया जाएगा ,मगरू चाचा ने घर पर भी ज्यादा नहीं खाया था , वे उस तरफ चल पड़े जहां खाने का इंतजाम था ,पर यह क्या ,उन्होने यह सोचा ही नहीं था कि खाना सबको अपने हाथ से लेना है , कोई परोस कर खिलाने वाला नहीं था, सब अपने अपने हाथों को उसी बर्तन में डालकर खाना निकाल रहे थे ,नवीन को उनहों कहा “हम ई गिद्ध भोज नहीं करेंगे ,कौनों दूसर इंतजाम नहीं है का” , नवीन ने नज़र दौड़ाई पर कोई इंतज़ाम नहीं दिखा ,फल वाले काउंटर से नवीन दो केले ले आया जिसे खा कर मंगरू चाचा जयमाल के लिए सुसज्जित मंच के सामने लगी प्रथम पंक्ति की कुर्सी पर बैठ गए ।  अन्य लोगों ने उन्हे जनवासे में आराम करने की सलाह दी, पर मंगरू चाचा कहाँ मानने वाले थे ,कहने लगे “बारात में आए है दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देने कि आराम करने” ।                  आखिर आशीर्वाद देते-देते रात के 12 बज गए , अब सोचा कि जनवासे में जा कर आराम करें ,नवीन का पता नहीं था ,शायद वह सो गया होगा ,जनवासे में पहुँचने पर सारी चारपाई फुल थी ,जनरेटर बंद हो गया था ,अंधेरे में किसी को पहचानना भी मुश्किल  हो रहा था , कोई पूंछने वाला भी नहीं था , चाचा नंगे पाँव वापस विवाह स्थल की ओर रवाना हो गए। मन में विचार आया कि, अब ज्यादा अच्छे से आशीर्वाद देने का मौका मिलेगा ,रात भर शादी देखने के अलावा कोई दूसरा उपाय भी नहीं था ,पैरों में ज़ोरों का दर्द था ,आँखें नींद के बोझ से बोझिल थीं , हरे थके मंगरू चाचा आखिर मंडप तक पहुँच ही गए ।  पाणिग्रहण की रस्में शुरू हो गई थी , मंडप के चारों तरफ बिछे गद्दों पर घराती और  बराती घर वाले ही मौजूद थे ।  साहू सेठ ने बड़े आदर से मंगरू चाचा को अपने पास गद्दे पर बैठने का इशारा किया ,चाचा कराहते हुये गद्दे पर बैठ गए, दूर ओसारे में बैठी महिलाएं बरातियों को प्यार के  रस से सराबोर गालियाँ सुना रही थीं ,मंगरू चाचा का ध्यान शादी में कम ,गालियां सुनने में ज्यादा था ,बहुत दिनों  के बाद उनके जीवन में यह अवसर आया था ,कभी - कभी कोई बात मन को गुदगुदाती तो अपने पिचके हुये मुंह  पर हल्की सी मुस्कान से बातों को समझने का संकेत दे देते ,पर कितनी देर तक उनका हौसला साथ देता ,बहुत थक गए थे ,उस पर पूरे दिन में दो केले से कितनी ऊर्जा मिल जाती ,रात 8 बजे सोने बाले का संयम रात 1 बजे जवाब दे गया , धीरे से खाली पड़े गद्दे पर अपने गमछे का तकिया बना कर कुबरी को बगल में रख लेट  गए , चलो जगह मिल गई सोने की , ईश्वर को धन्यवाद देकर गहरी नींद में उतर गए। जब सो रहे थे तो मंडप के पास आए कुत्ते को दौड़ने के लिए किसी ने उनकी कुबरी का दुरुपयोग कर लिया ,जबर्दस्त ज़ोर लगा कर फेंके जाने से बेचारी वह भी टूट गई ,देखते - देखते भोर हो गई थी उन्हें उठाया गया , उठने में बड़ी दिक्कत हो रही थी ,भला इस उम्र में नाचने के बाद जोड़ों का तो यह हाल होना ही था ,फिर भी उठे तो देखा की विदाई की तैयारी हो रही थी ,नवीन को अपने पास देख उसे बहुत भला बुरा कहा ,रात की दुर्दशा की कहानी बताई , कुबरी की तरफ निगाह पड़ी तो वह भी गायब ,नवीन टूटे हिस्से दिखा कर बोला यह तो टूट गई बड़के बाबू”, जब हम ही टूट गए तो कुबरी का क्या दोष , मंगरू  चाचा ने दबी हुयी आवाज़ में कहा । सुबह की नित्य क्रिया नंगे पाँव ,बिना कुबरी के ,पैरों की असहनीय पीड़ा के साथ मंगरू चाचा को करनी पड़ी ,सुबह का नास्ता  बैठा कर करवाया गया , तब जा कर कहीं भूखे पेट में अन्न गया , खैर विवाह सम्पन्न होने के बाद बरातियों को घर पहुँचने की जल्दी होती ही है , मंगरू चाचा जिस बोलेरों में आए थे उसी में बैठ वापस गाँव आए ,उनकी बिगड़ी हालत देखकर ड्राईवर ने उन्हें घर तक पहुंचाया ,मंगरू चाचा के मन में बदले सामाजिक परिवेश में हमारे रीति रिवाजो में हुये परिवर्तन को लेकर अंतर्द्वंद्व चल रहा था ,तीन दिन वाली बारात में थकान उतारने का भी वक़्त मिलता था ,सभी रीति रिवाज कायदे से होते थे ,नाच गाने का तरीका भी अलग था ,इस भागमभाग वाली बारात से तो अच्छा है दुल्हन को सिर्फ दूल्हा जा कर ले आए ... समय  तेज़ी से बदल रहा है ... हो सकता है भविष्य में ऐसा ही हो ... पर जो भी हो अब हम बारात कभी नहीं जाएंगे , मंगरू चाचा ने ऐसा दृढ़ निश्चय किया।

Thursday 28 May 2015

प्रेम पथिक चल जरा संभल

हे प्रेम पथिक चल जरा संभल
तेरी राह में हैं हर पल नव छल
स्वार्थ  लोभ से छिद्र छिद्र है
व्याकुल प्रेम पटल कोमल ....

जाति धर्म  और ऊंच नीच सब
आँधी पतझड़ ज्वालामुखी से ,
वेग ताप और दाब असहनीय
कोमल किसलय जाते हैं जल
हे प्रेम पथिक चल जरा संभल ....

बातों का भ्रमजाल मनोहर
संग जीने मरने की कसमें
प्रेम तन्तु से अधर लटकते 
नीचे आग उगलते दलदल
हे प्रेम पथिक चल जरा संभल ....

व्यर्थ नहीं ये प्रेम शब्द पर
चौकस रहना इसके पथ पर 
जीवन अमृत का यह सागर
नव कोपल सा नाज़ुक निर्मल
हे प्रेम पथिक चल जरा संभल
तेरी राह में हैं हर पल नव छल ....

अनिल कुमार सिंह

Thursday 21 May 2015

लाचारी में गला रुँध जाता है

ऊंची ऊंची
अट्टालिकाओं की
जगमगाती रोशनी को
कच्चे घर के ओसारे से ,
खामोश निराश
नज़रों से
झाँकता है ,
अपने घटते हुये
तेल से चिंतित
हाँफता है ...
एक दीपक ,
आँख में नमी लिए हुये...
जलता रहता है ...
पेट्रोल पम्प पर
हॉर्न बजाती
बड़ी बड़ी गाड़ियों को
चुपचाप खड़ा
देखता है ,
राशन की दुकान
पर लाइन में लगा
मिट्टी के तेल का
खाली जरीकेन
खामोशी से
अपनी बारी का
इंतज़ार करता है ,
आँखों में नमी लिए हुये.....
खड़ा रहता है ....
सचमुच
लाचारी में
गला रुँध जाता है दोस्तों ...
लाचारी चिल्लाती नहीं है ,
जहां चिल्लाहट है ,
वहाँ लाचारी नहीं है .....
नम आँखों से तो दिखाई भी कम देता ...

Saturday 16 May 2015

हाथ जोड़ कर वह आता है…

जर्जर छप्पर की चौखट  में
 शीश झुका कर हाथ जोड़ कर
 एक मौसम में वह आता है
मुझको मेरे दर्द दिखा कर
टूटी बंस -खटिया पर बैठ कर
स्वप्निल दुनियां में ले जाता है,

खाली  पेट ,फटे वस्त्रों में
झुर्री वाले जवां चेहरों में
दाने को मोहताज़ घरों में
बस दिखता उसको मतदाता है ,
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है…

भूखे  को रोटी दिखला कर  ,
प्यासों को दो बूँद दिखाकर ,
फटी जेब में हरे नोट रख ,
झूठी आस धरा जाता है ,
हाथ  जोड़ कर एक मौसम में वह आता है,


बारिश में नहीं घर टपकेगा ,
चूल्हा दोनों वक़्त जलेगा,
सरिया में अब बैल बंधेंगे ,
ढाँढ़स एक  बंधा जाता है
हाथ जोड़ कर एक मौसम में वह आता है.......

चूल्हा क्या ढिबरी नहीं जलती,
समय पर मज़दूरी नहीं मिलती ,
माँ के इलाज़ में खेत बिक गए ,
उस पर, हर मौसम तड़फाता है ,
पांच साल तक नज़र नहीं  आता,
जाने कहाँ चला जाता है……
हाथ जोड़ कर एक मौसम में जो आता है ……






Tuesday 12 May 2015

मक्के के खेत और विदेशी मेहमान



मक्के  के खेत और  विदेशी मेहमान '

पहाड़ों के हालात इन्सानों को मेहनती और साहसी बना देते हैं , जीवन चक्र के लिए जरूरी खेती भी इतनी आसान नहीं ,दुर्गम पहाड़ियों में ऊंची-ऊंची मेड़ों के सहारे सीढ़ीनुमा खेतों में प्राकृतिक जलस्त्रोतों से पानी की राह लहलहाते मोहक खेतों का पोषण करती है , प्रकृति का नज़ारा देखते ही बनता है।  इस बार मक्के की फसल अच्छी है ,जानवरों ने भी नुकसान नहीं किया है , अकरम और रेशमा अपने सीढ़ीनुमा खेतों पर बतियाते चले जा रहे थे , तभी दोनों के पैर ठिठक गए ,ये क्या ? बड़ी दूर में मक्के के पौधे  धराशायी हो गए थे , जैसे किसी ने जानबूझ कर कुचला हो ,”हाय अल्लाह ! ये कैसे हुआ?”  रेशमा ने अफसोस भरी ज़ुबान में कहा , चलो कोई बात नहीं मैं इन्हें काट लेता हूँ कम से कम जानवरों को हरा चारा  मिल जाएगा ,ऐसा कह कर अकरम हंसिये  से गिर चुके  पौधों को काटने लगा , काटते काटते खेत में खून के निशान देख चौंक पड़ा , रेशमा! रेशमा! इधर आओ ,इधर आओ , ज़ोर से चिल्लाया , रेशमा ने अपने बारीक नज़रों से खून के निशानो का कुछ दूर तक पीछा  किया , थोड़ी  ही दूर पर उसे एक मफलर , कुछ खत्म सिगरेट के फ़िल्टर  और अखरोट के छिलके और बुलेट के खाली खोखे नज़र आए ,दोनों को माजरा समझते देर नहीं लगी, “हरामजादों को हमारा ही खेत मिला था” रेशमा ने गुस्से से रुँधे स्वर से कहा, मक्के और दहशतगर्दों का पुराना नाता है , एक खेत से दूसरे खेत को पार करते करते बहुत दूर निकल जाते हैं ,ऊंचे ऊंचे मक्के के खेत उनके छिपने का माकूल ठिकाना होते हैं । देखते देखते शाम हो गई ,अकरम  ने कटे हुये बोझ को सिर पर रखा और दोनों वापस घर की ओर चल दिये । दहशतगर्दों के दस्ते गुज़रने शुरू हो गए हैं ,तभी तो कल रात से शेरा पोस्ट से फ़ाइरिंग की आवाज़ें आ रही थी ,जीना मुश्किल कर दिया है ,इन कुत्तों  ने .... बातें करते करते दोनों अपने घर पहुँच गए ,अकरम ने सिर से मक्के  का बोझ उतारा उसे गंड़ासे से चारा बनाने के लिए काटने कागा , मन ही मन गुस्से से हाथ तेज़ तेज़ पर बेतरतीब चल रहे थे , सुबह जो गोलियों की तेज़ आवाज़ें आ रही थी ,तब एंकाउंटर हुआ होगा , मेरे ही खेत में ,न जाने कितने थे, रात इसी गाँव के किसी घर में डेरा डाला होगा ..... तरह तरह के सवाल - जवाब मन में चल रहे थे ,उधर रेशमा बगल के बेतार नाले के पास वाले अखरोट के पेड़ पर खेल रहे बच्चों को बुला लायी ,बच्चे भी बात सुन कर दहशतजदा हो गए ... अंधेरा हो चला था, सबने एक साथ मक्के की रोटी के साथ कड़म का साग खाया ,और बिस्तर पर जाने की तैयारी करने लगे ... तभी अकरम ने रेशमा से कहा “तुम तहखाने में बच्चों को लेकर सो जाओ,मैं यहीं कमरे में सो जाता हूँ । “ तहखाने का रास्ता घर के पीछे से सुरंगनुमा रास्ते से जाता था,अपने बचाव के लिए ज़्यादातर लोगों ने घर में तहखाने बनवाए थे । सब अल्लाह से अच्छे कल की दुआ मांग कर अपने अपने बिस्तर पर चले गए ,ये रातें खौफ वाली होती ही हैं ,भला नींद किसे आती है । रात में एल ओ सी पर गोलियों की आवाज़ें इन परदेशियों के आने की खबर दे रही थी ,बेतार नाले की निरंतर आवाज़  साफ सुनाई दे रही थी। अकरम सो नहीं पा रह था ,जरा सी आहट  पर उठ कर बैठ जाता और दरवाजे के सुराख से बाहर झाँकता , फिर बिस्तर पर पड़  जाता। रात के लगभग डेढ़ बजे थे कुत्तों के भोंकने की आवाज से वह फिर चौंक गया ,उठकर झाँका तो पास वाले नाले के पास जुगनू की तरह जलकर बंद हो जाने वाली रोशनी दिखाई दे रही थी ,जरूर कुछ लोग गाँव की तरफ ही आ रहे थे, रोशनी जैसे जैसे नजदीक आ रही थी , अकरम का शरीर पसीने से तर बतर हो रहा था ,पर वह तैयार था, वह कोई पहली बार यह सब नहीं देख रहा था , पदचापों की आवाज़ तो उसी के घर की ओर बढ़ रही थी  ,उसने आंखे बंद की और अल्लाह से सलामती की दुआएं मांगने लगा ,तभी ज़ोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज पर वह दरवाजे की ओर बढ़ा और सहम कर दोनों किवाड़ों को खोल कर देखा , दो नौजवान, चेहरे पर हल्की दाढ़ी , हुये कंधे पर भारी भारी बैग टांगे और हाथों में भारी हथियार लिए बड़े अदब के साथ अकरम से “अस्सलाम  अलेकुम”  कहते हुये चौखट पार  कर भीतर बरामदे में पड़े तख्ते पर बैग रख कर बैठ गए,अकरम हाथ जोड़े खड़ा रहा। उनमें से एक जिसे दूसरा टाइगर कह रहा था ,ने कड़े लहजे में पूंछा  और कौन कौन है घर में ? कोई “नहीं साहब मैं अकेला हूँ” डरते हुये अकरम ने जवाब दिया , डारे पर टंगे रेशमा के कपड़ों की ओर इशारा कर के टाइगर  बोला “तेरी जनानी किधर है ”, साहब मेरी सास मर गई है सो वो  माइके गई है  साहब ,हाथ जोड़े वह दीन भाषा में बोला । चल बड़ी  भूख लगी है ,मुर्गा सुरगा है तेरे पास  ,जी है साब, अभी लता हूँ ,अकरम जल्दी से भागता हुआ मुर्गों के दड़बे पर गया और एक बड़ा मुर्गा ले आया ,और छुरी ले कर खुद ही काटने लगा । दोनों अकरम को मुर्गा रोस्ट करके लाने का आदेश दे कर अपने साथ लाये भारी भरकम मोबाइल सेट से बात करने लगे ,अकरम डरा हुआ सुलगते तंदूर में लकड़ी डालने लगा ताकि तंदूर को फिर से गरम किया जा सके । आधी रात में उसके घर की चिमनी से धुंआ उठता देखा गश्त कर कर रहे फौजी भी अकरम के घर की ओर बढ़ चले , तंदूर गरम हो चुका  था , फिर से  दरवाजे के खटखटाने की आवाज़ से अकरम समझ गया ,और वे दोनों एक कोने में चिपक  कर खड़े हो गए, दोनों ने  अपने हाथों की अंगुली को ट्रिगर पर रखा था , अकरम ने दरवाजा खोला, तेज़ रोशनी वाली टॉर्च की रोशनी से उसका सामना हुआ, और कौन है घर के अंदर, कोई नहीं साब  मैं अकेला हूँ , तो ये धुआँ कहाँ  से उठ रहा है ,,साबजी बीबी घर पर नहीं  है भूखे  सो गया था , साबजी नींद नहीं आ रही थी सो रोटी बना रहा था साबजी ... फौजी उल्टे पाँव वापस लौट गए, उसने राहत की सांस ली ।
दरअसल फौज को आधी रात में चिमनियों से निकलने वाले धुंऐ से अंदाज़ा हो जाता था ,पर वो कोई ऑपरेशन किसी के घर में रात में नहीं करते, किन्तु उस घर पर निगरानी रखते थे । अकरम ने देशी मसालों में लपेटकर मुर्गे को तंदूर में पकाया और उन्हें सौंप दिया ,टाइगर ने अपने बैग  से विदेशी शराब की बोतल निकाली और इस तरह पीने लगा  जैसे कई दिनों  से कुछ खाया पीया ही  न हो  ,शुरूर चढ़ने  लगा और वे लुढ़क कर फर्श पर बिछे कालीन पर अपने बैग  को तकिया बना सो गाए , सोते समय अकरम को कहा कि सवेरे वाली आजान के समय उठा देना ,अकरम रात भर वहीं बैठा रहा ,उन दोनों को देखता, मन ही मन सोचता कि ये जेहाद की बात करने वालों का पेट कौन भरता  है , इतने मंहगे हथियार , इनकी कीमत से तो आराम से जिंदगी कट सकती है , हम जैसों के लिए बच्चों की भूख शांत करना सबसे बड़ा जेहाद है , जानवर , मुर्गी न पालो तो खेती से  पेट भी नहीं भर सकता   , बार बार उसका ध्यान तहखाने की तरफ भी जा रहा था ,वे सब भी वहाँ परेशान होंगे ,शुक्र है इन कमीनों को उनका पता नहीं चला, अकरम रात भर वहीं फर्श पर बैठा अपने आप से बातें करता रहा ।
देखते देखते सुबह की पहली अज़ान का वक़्त हो गया , अज़ान शुरू होते ही अकरम ने उन्हें  जगाया , दोनों आंखे मसलते हुये जाग गए, टाइगर  ने अकरम से पूंछा वज़ू कहाँ करते हो ,अकरम ने बाहर इशारा करते हुये कहा ,साबजी बगल वाले चश्में मेँ ,चश्मा नाले की मुंडेर पर था और उसका पानी लगातार नाले में समाता  था , साफ पानी का है साबजी , टाइगर उसे घूरते हुये एक हाथ मेँ टॉर्च लिए बाहर चल पड़ा , बाहर अभी भी अंधेरा ही था  ,दबे कदमों से जैसे ही नाले की ढाल की कोर पर पहुंचा किसी ने उसके सिर पर करारा वार किया ,टाइगर गोल गोल बड़े पत्थरों के साथ निस्तेज हो कर नाले के तेज़ बहाव मेँ औंधे मुंह गिर पड़ा , सुबह सुबह की आजान मेँ उसकी चीख  दब के रह गई, दूसरा साथी और अकरम उसका इंतज़ार कर रहे थे ,चिड़ियों का चहकना शुरू हो गया था ,अंधेरा धीरे धीरे दूर हो रहा था ,दोनों  घबराए हुये थे ,क्या हुआ टाइगर वापस नहीं आया, टाइगर पांचों वक़्त का नमाज़ी था ,खतरों से खेलना  जानता था ,कहीं मुझे छोड़ कर भाग तो नहीं गया ,नहीं नहीं वो मर सकता है  पर मुझे छोड़ कर भाग नहीं सकता ,दोनों  बात ही कर रहे थे कि दरवाजे पर जूते पटकने की  आवाज़ हुयी , अकरम ने टाइगर के लौटने का सोच कर दरवाजा खोला, किन्तु सामने फौजी दस्ता था दूसरा साथी कुछ संभल पाता  उससे पहले सैनिकों ने उसे दबोच लिया ,सैनिक दस्ते के कमांडर ने पूंछा  और कितने हैं ,अकरम ने कहा साबजी एक बाहर वज़ू करने गया था, पता नहीं, अभी तक आया नहीं ,सैनिकों  ने पूरे घर की तलाशी ली ,बाहर निकल  कर पीछे के  रास्ते तहखाने के मुहाने तक पहुंचे ही थे ,कि  रेशमा  खून से लथपथ हाथ में गंड़ासा लिए खड़ी थी , उसकी आँखों में क्रोध और बदन खौफ से  सहमा था ,हर वक़्त अपने सिर को दुपट्टे से बांधे  रखने वाली रेशमा  का दुपट्टा कहीं गायब था ,बाल  बिखरे थे ,गरज कर बोली “हाँ मैंने उस कुत्ते को  मार डाला ,हाँ हाँ मैंने ही मार डाला उसे ” .... सब आवाक थे, वह चिल्लाते हुये दूसरे साथी पर झपट्टा मारने को बढ़ी, परंतु  सैनिकों ने उसे रोक दिया ,अकरम भी बड़े  आश्चर्य से रेशमा को देख रहा था ,बच्चे बेसुध सोये थे ,सुबह होते ही गाँव के लोग टाइगर  को देखने नाले के पास उमड़े ,टाइगर पानी  के तेज़ बहाव में  एक बड़े पत्थर से अटका था, रेशमा पूरे गाँव की शान थी , पूरे गाँव में रेशमा की चर्चा थी ,रेशमा की बहादुरी से प्रेरित गाँव वालों ने ग्रामीण रक्षा दल बनाया ,नतीजतन बेतार नाले के किनारे से इन क्रूर विदेशी मेहमानों ने आना बंद कर दिया । अब मक्के  के खेतों में दहशत नहीं उगती ।   

                                          अनिल कुमार सिंह


(यह सुनी सुनाई वारदातों पर आधारित कपोल कल्पित कहानी है ,किसी जीवित पत्र से मेल संयोग हो सकता है )

अगले ही पल का ठिकाना

अगले ही पल का ठिकाना
किसे पता और किसने जाना ,
रेत के महलों पर बैठे
जिंदगी को बुनते जाना
कितनी सुन्दर
कितनी लम्बी

किसे पता और किसने जाना।

एकटक -अनथक चकोरा
चन्द्र कलाएं वो क्या जाने
चाँदनी का जो दीवाना

मूक बातें
कितनी रातें
किसे पता और किसने जाना।


स्वाति की बूंदें क्या जाने
रूप का अगला परिवर्तन
शांत होगी किसकी तृष्णा
सीपियों
या चातकों कीकिसे पता और किसने जाना ....


एक सुर में  सब हैं कहते
घाट पर शव के बाराती
है यही अंतिम ठिकाना
कौन सा दिन
कौन सा पल
किसे पता और किसने जाना.......


Tuesday 5 May 2015

देखो कौन कहाँ मिलता है?

"देखो कौन कहाँ मिलता है ?"

जैसी जहां की मिट्टी मौसम,
वैसा फूल वहाँ खिलता है,
जीवन के लंबे रस्ते में
देखो कौन कहाँ मिलता है ? .....

टूटी फूटी ऊबड़ खाबड़
यादों का कमजोर खंडहर ,
मेघ अभ्र सा रूप बदलता
साथ साथ अपने चलता है ,
याद सदा किसको रहता है ,
देखो कौन कहाँ मिलता है ?.....

नज़रें झुका कर,रूप बचा कर ,
शरमा कर कोई मिलता है,
मिलता कोई बांह पसारे,
गले लगा कर भी मिलता है ,
प्रेम कोष रिक्त हो जिसका
उसको कहाँ जहां मिलता है
देखो कौन कहाँ मिलता है? ......

शीर्ष ध्येय की पगडंडी पर
चलते रहना भ्रमित न होना ,
घर का आँगन,माँ का आँचल ,
दृग पलकों से बहता काजल,
मोह पाश बन कर छलता है,
देखो कौन कहाँ मिलता है?....

सागर से स्थिर चितवन में
प्यास बुझाने नदियां आती ,
प्यासे मोती कवच तोड़ते
और कहीं गरल घुलता है ,
सागर का संयम कहता है ,
देखो कौन कहाँ मिलता है ?...

अनिल कुमार सिंह
9336610789
आकाशवाणी फ़ैज़ाबाद

अन्धविश्वास

तुम जिसे
अन्धविश्वास कहते हो ,
अन्धविश्वास ही होगा
शायद !
पर मेरे लिए
बेहतर है तुमसे ....... 
…यह अन्धविश्वास,
मुझे
कठिन समय में
विश्वास देता है.,
ध्येय और लक्ष्य के
रास्ते  पर मिलने वाले
भ्रमित  मार्गों पर
भटकने  से रोकता है,
करुणा ,सहयोग,
मानवता
और भक्ति का
सबक देता है मुझे,
यह अन्धविश्वास ही होगा
किन्तु  मुझे विश्वास देता है …

मैं तुम्हें चाँद नहीं कह सकता

तुम्हारे चेहरे को
चाँद सा चेहरा
कह नहीं सकता
नीरस, निरार्द्र ,निर्जीव,
बड़े बड़े गड्ढों से भरा ,
दूसरे की रोशनी से
चमकने वाले की उपमा
तुम्हारे चेहरे को कैसे दे दूँ,
और ये प्यार जिसे तुम
दिल की सौगात समझते हो
वह भी
दिल की नहीं तुम्हारे
चालबाज़ मस्तिष्क की उपज़ है
दिल खोल के
दिखाने का दावा करने वाले,
खुला दिल देखोगे,
तो होश उड़ जाएंगे,
वह चार खंडों में विभक्त
मांस के
रुधिर पम्प के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं,
जो शिराओं और
धमनियों के जाल में
रक्त का वाहक है ,
और ये भी सुन लो,
कि ये तारे भी मुझसे टूटने वाले नहीं,
मुझे अपनी हैसियत का अंदाज़ा है
एक बार फिर से सोच लो ,
तुम्हारी कल्पनाएं
मेरे यथार्थ
से मेल नहीं खाती।

अनिल कुमार सिंह

Friday 1 May 2015

मालिक कैसी दुनिया बना दी .......

सड़क की पटरी
रैन बसेरे
झुग्गी झोपड़ी
की आबादी,
रात हुयी तो
ऐसे लगती,
जैसे किसी ने
लाश बिछा दी ,
कचरों में
जीवन तलाशते,
जूठे पत्तल
दोने चाटते ,
भूखे पेट
भिक्षा या शिक्षा
बच्चों को भी
कैसी सज़ा दी,

कहाँ गया
मानवाधिकार
मानवता को
भी धिक्कार,
बांस ,सिरकी ,
सरपत के बसेरे
घोर तमस
जीवन को घेरे
दबी चीख रही कराह
मालिक कैसी
दुनिया बना दी .......
अनिल कुमार सिंह
सी 3 आकाशवाणी कॉलोनी फ़ैज़ाबाद 224001
9336610789