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Saturday 27 June 2015

मुहब्बत


नवकोपलें जिन्हे दुआओं से सींचा था ,
अब उनकी अदाएं आँखों से नहीं जाती ,
यूं ही झूमकर लहराती रहें उम्र भर ,
ये वो फसलें हैं जो कभी ,काटी नहीं जाती ।
- अनिल कुमार सिंह
जोधपुर से वापसी के समय बच्चों ने ट्रेन से विदा करने का जिम्मा उठाया ,एहसास हुआ कि बच्चे अब बड़े हो गए, .........

Saturday 13 June 2015

अपनों की मुहब्बत

मुहब्बत के आईने पर जमी ओस को
निगाहों के नर्म कपड़े से हटा कर देखा ....

कुछ बिखरी संवरी मुहब्बतों के अक्स 
रोती हँसती कुछ कहती  आँखें ,
गले लगाने को बेताब बढ़ी हुयी बाहें ...

नहीं नहीं .... ये वो मुहब्बत नहीं ...
जो टूट कर बिखर चुकी थी कभी  .....
ये वो मुहब्बतें थी
जो  धूमिल भी नहीं होती कभी  ,
ये मुहब्बतें मेरे अपनों की ....
कलाई के धागों और माथे के टीकों की ,
बचपन के खेल और ऊंचे ऊंचे सपनों की ,

हाँ, बेहद मुहब्बत करते हैं मेरे अपने मुझसे ,
काश! वक़्त भी कुछ रहम करता ,
मेरी अपनों  से दूरी कुछ कम करता ...


अनिल कुमार सिंह

Sunday 7 June 2015

विभव और वैभव

विभव ..
चमकती बिजलियों का,
शून्य हो जाता है
धरा के संसर्ग से ,
जमी पर चलने वाला
आसमान में चमकना चाहता है ,
विभव नहीं ,
अहंकार है
अपने वैभव पर
अपनी पहुँच
और ठाठ बाट पर ,
भूल मत कि
श्रेष्ठ राजा भी बिके थे
डोम के घर घाट पर,
कहाँ गया वैभव अकबर का ,
कुबेर और कर्ण का
क्या कहीं शेष है ?
यह सत्य नहीं कि
गगन में होता छेद है ,
दंभ- वश करता
मनुज मनुज में भेद है ,
हाथों की लकीरों को
बदलने का सचमुच
सामर्थ्य है तुझमें ,
तो सुन,
बदल उन हाथों की लकीरों को ,
जो तेरे सामने दीनता -वश फैलते हैं ,
गौर से देख उनकी भी
आँखों में कुछ सपने तैरते है ,
दिखेगा कहाँ से ,जमीं पर चलोगे तब न ........ दरिद्र देव की सेवा हेतु समर्पित॥

अनिल कुमार सिंह

Wednesday 3 June 2015

जमीं की बात

फटे आसमानों को
सिलने का हुनर
सीखें भी तो कैसे ,
बिन पंखों के
उड़ने का सबक
सीखें भी तो कैसे ,
जमीं पर रहते हैं ,
जमीं की लिखते हैं ,
चाँद तारों की बातें
करें भी तो कैसे ????

अनिल

Tuesday 2 June 2015

मुझे मंज़िलों की तलाश है

मुझे मंज़िलों का पता नहीं
मेरे रास्ते मेरे साथ हैं,
तुझे सिर्फ मेरी ही प्यास है,
मुझे मंज़िलों की तलाश है।
तूँ खड़ा जो मेरी राह में ,
मुझे ताकने की चाह में,
तुझे एक नज़र की आश है ,
मुझे मंज़िलों की तलाश है।
मुझे बच के चलने का हुक्म है,
मेरी एक नज़र भी ज़ुल्म है ,
तेरे सौ गुनाह भी माफ हैं,
मुझे मंज़िलों की तलाश है।
तेरी फब्तियाँ तेरी मस्तियाँ ,
खामोश रहती ये बस्तियाँ,
सब जानकर चुपचाप हैं,
मुझे मंज़िलों की तलाश है।
तेरा जुनून तेरी आशिक़ी ,
मेरा जुनून मेरी मंज़िलें ,
मेरी बंदगी मेरे साथ हैं ,
मुझे मंज़िलों की तलाश है।