Search This Blog

Saturday 26 September 2015

मिलने को खारे समुंदर को
भटकती विव्हल नदियाँ
मीठे पानी को लिए ,
इस छोर से उस छोर तक ,
कवच ध्वंस को सिर पटकती
सागर मध्य तृषित सीपी , गर्भ में मोती लिए
इस खोह से उस खोह तक ,

मौत की मंज़िल सुनिश्चित ,
भटकती है नर पिपासा ,
जीवन अमृत को लिए ,
इस मोड़ से उस मोड़ तक ,
तृप्तता को लिए ,
असंतृप्त है ,
अभिशप्त है ,
मृग ये सारे ,
भटकते हैं ,
भागते हैं ,
कस्तूरी अपनी लिए ,
ज़िंदगी के छोर तक ........
अनिल कुमार सिंह

Saturday 19 September 2015

मुहब्बत रूठने की हद पे ,मान जाती है
एक बार चले आओ कि, जान जाती है ।
यूं ही नहीं लेती धड़कने, नाम तेरा ,
दिल के सुकूँ को पहचान जाती हैं .........
अनिल

Sunday 13 September 2015

ऐ ज़िंदगी तूँ मुस्करा

कभी तो हंस के नज़र मिला ,
ऐ ज़िंदगी तूँ मुस्करा ,
ये मुश्किलें परेशानियाँ ,
सब तेरी मेहरबानियाँ ,
नहीं फिर भी तुझसे कोई गिला ,
कभी तो हंस के नज़र मिला ।
ऐ ज़िंदगी तूँ मुस्करा....

कभी ठोकरों ने गिरा दिया ,
तेरी बाजुओं ने उठा लिया ,
मुझे जो मिला तुझसे मिला,
कभी तो हंस के नज़र मिला ,
ऐ ज़िंदगी तूँ मुस्करा ....
तेरे जख्म बनें मेरी दवा ,
तेरे दर्द भी बन कर दुआ ,
मेरे साथ थे , मुझे गले लगा  ,
कभी तो हंस के नज़र मिला ,
ऐ ज़िंदगी तूँ मुस्करा ....
अनिल