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Wednesday 30 December 2015

तेरे ख़त

तन्हाइयों की सिकुड़न जब हद से गुज़रती  है ,
तेरे ख़त , मैं दराज़ों से निकाल लेता हूँ ....
नर्म लिखावट से लिपटे आंसुओं के टुकड़े ,
लबों से लगा कर कुछ प्यास बुझा लेता हूँ ,
महकती है मुहब्बत ख़तों  से आज भी ,  
कि ख़त फूल कभी मुरझाते नहीं हैं ,
हाँ , ये खुद रोते हैं फूट फूटकर ,
कि
ख़त लिखने वाले, अब कभी आते नहीं हैं ........
अनिल

Monday 28 December 2015

नए वर्ष तुम्हारा स्वागत है

वक़्त के तिरछे रैम्प पर
मखमली ख्वाबों को फिसलने दो
ज़ख़्मी सिसकती एड़ियों पर
दिखावे के मरहम को मलने दो
वक़्त की चोट से उधड़ चुकी
चमड़ी की परतों को
मखमली चादर से ढक दो ,
मेरे हताशा भरे चेहरे पर
नकली मुस्कराहट का
मुलम्मा चढ़ा दो ,
हारा थका हूँ तो क्या ,
मुझे भी चलने दो ,
जगमगाती रंगीन रोशनी में ,
थिरकते हुए संगीत पर ,
नए ज़माने के फैशन के साथ ,
हाथ में फूलों का गुलदस्ता लिए ,
इक नशा खड़ा है कुछ दूर मुझसे ।
मैं अपने ज़ख्मों को छिपाए ,
बेताब हूँ उससे मिलने को ,
और ये कहने को ,
"नए वर्ष तुम्हारा स्वागत है" !
अनिल कुमार सिंह

बीते वर्ष

लगा रहने दो अपने ,
बेवज़ह
मुस्कराते हुये
मुखौटे को ,
तुम्हें देख कर
रूह
कांप जाती है मेरी ,
तुम्हारी हंसी में
जाने कितनी
चीख़ों के दर्द हैं ,
फटी हुयी ज़मीं की
घबराहट है ,
अपनो से
बिछुड़ने के ग़म हैं ,
खेतों की फटी
बिवाइयाँ हैं ,
और खूनी फसलें भी
जो तुमने उगाई थी
अपने हाथों से ,
अपनी जेबों में
भरे बारूद को भी
अपने साथ ले जाओ ,
अब बस! चले जाओ!
चले जाओ !
मैं नहीं देख सकता
बीते वर्ष ,
बहुत रुलाया है तुमने,
लगा रहने दो अपने
मुखौटे को,
मैं तुम्हारा
असली चेहरा
नहीं देख सकता ......

अनिल कुमार सिंह

Friday 25 December 2015

स्मृतियों के अवशेषों के दरवाजों को
खटखटाते हैं ,कुछ ऋतुओं के पल ,
कुछ नहीं बस कंटकों के शीर्ष पर,
कहीं कहीं कुछ फूल मुरझाए पड़े हैं ,
उदास रंगों से कह जाते है जैसे ,
सूख कर हम ,अब भी हैं महकते ,
न न, छूना नहीं एक पल में बिखर जाएँगे,
ये बिछुड़ी मुहब्बत है ,बस दूर से ही महकने दो ...........

अनिल

एक पत्थर और मारो .........

चल रहा गति में वो अपनी,
छिद्र से छिप कर निहारो,
ज़ख़्मों के ईंधन से चलता,
एक पत्थर और मारो ।

जो तपा झंझावातों में,
दम रहा उसकी बातों में ,
आँधियाँ रुक मार्ग देती ,
रुका नहीं काली रातों में ,
उसको जो चाहे पुकारो ,
एक पत्थर और मारो ,

रास्ते के पत्थरों को,
तराशता निर्बाध निर्झर,
शूल खुद राहें दिखाते,
सत्य पर रहता जो निर्भर,
सत्य की सूरत सँवारो ,
एक पत्थर और मारो .........

अनिल कुमार सिंह

Saturday 19 December 2015

विरासत का फर्ज़

कहानी शीर्षक : विरासत का फर्ज़

रोज़ सुबह शाम के चूल्हे की चिंता, ऊपर से बीमार घरवाली ,बच्चों को स्कूल भेज कर रामू अपने ठेले को दिन भर के धंधे के लिए गाँव के चौराहे व्यवस्थित कर रहा था ,सर्द मौसम में चबैना खाने वालों की संख्या बढ़ जाती है , इसलिए गर्मी के मौसम में गन्ने का जूस बेचने वाला रामू सर्दियों में गरमा गरम चबैना बेचने का काम करता था ,गाँव में चौराहे पर सुबह शाम ठीक-ठाक भीड़ हो जाती थी,कुछ नकद ,कुछ उधार रामू का गुज़ारा हो जाता था । आज बहुत ठंड थी और कोहरा भी , रामू एक बड़ी कढ़ाई में बालू को चूल्हे पर
गरम कर अपने कारोबार शुरू करने के लिए प्रयासरत था ,और चौराहे पर कुछ जानवरों के अलावा कोई नहीं था । धुन्ध भरे चौराहे पर  शहर से आने वाली पहली बस रुकी ,कोई उतरा !शायद महिला ! अपनी तरफ परछाई को आते देख रामू कढ़ाई में तेज़ी से हाथ चलाने लगा, युवती ठेले के पास खड़ी थी और रामू तेज़ी से हाथ चलाये जा रहा था ।
“सुनो!’
“जी बहन जी’’,
“यही रामगंज है ,”
“जी बहन जी,’’
“पी.एच.सी. कहाँ है” ?
यहीं पंचायत भवन के पास ,बाद यहाँ से दो मिनिट पैदल चलिये बहन जी ,वहीं है ...पर इस समय कौनों नहीं मिलेगा ऊंहा, चबैना खाएंगी बहन जी ,बहुत गरम है...
नहीं, जैसे ही महिला आगे चलने को हुयी ,रामू ने कहा ,
ले लीजिये बहन जी ,बोहनी आज आपके हाथ से हो जाएगी ,वैसे भी अस्पताल में अभी कोई नहीं होगा ,9 बजे के बाद खुलेगा बहन जी।
अच्छा चलो बना दो ... महिला ठेले के पास लगी लकड़ी की बेंच पर बैठ गई ....
“तुम्हारा नाम क्या है “?
“रामू , सब रामू भूज नाम से जानते हैं बहन जी ”,
आप यहाँ ईलाज करने कहाँ से आई हैं बहन जी ,यहाँ डॉक्टर नहीं है बहन जी ,पर दवा पट्टी हो जाती है ,बगल में बंगाली डॉक्टर है ,आप चाहें तो उन्हें दिखा सकती हैं ,रामू जल्दी जल्दी बोले चला जा रहा था ,एक अखबार के लिफाफे में चबैना निकाल कर महिला को पकड़ाते हुये बोला , “सिर्फ पाँच रुपए बहन जी” ।
महिला मुस्करायी और पाँच रुपए अपने पर्स से निकाल कर देते हुये बोली ,
“मैं इसी अस्पताल में नई डॉक्टर हूँ” ।
रामू रुपए हाथ में पकड़ कर सन्न हाथ जोड़े खड़ा हो गया, धीमे स्वर में बोला “डॉक्टर साहिबा माफ करिए ,मैं कम पढ़ा लिखा हूँ ,आपको पहचान नहीं पाया । भगवान की बहुत बड़ी किरपा है साहब जो आप हमारे गाँव में आ गई , हम लोग बहुत परेशान हैं ,कोई इलाज़ नहीं मिल पाता साहब , महंगायी के कारण झोला छाप डॉक्टर के जाना पड़ता है , तसल्ली कर लेते हैं कि इलाज़ हो रहा है,
मर्ज पकड़ में आया तो ठीक वरना राम नाम सत्य हो जाता है साहब” ।
“अरे! नहीं , नहीं मेरे पैर न छूओ रामू ”...
“साहब! बहुत परेशान हूँ ,मेरी बीबी कई दिनों से बिस्तर पकड़े है, बहुत रुपया खर्च हो गया , दो छोटे छोटे बच्चे हैं , आपकी दया की जरूरत है ,साहब !”
इतना कह कर रामू रोने लगा ...
उसको रोता हुआ देख महिला ने कहा...
“सुनो ! तुम कल ही उसे अस्पताल ले आना , वह ठीक हो जाएगी ”...
साहब ! वह तो चल भी नहीं सकती है , बस कुछ दिन की मेहमान है साहब ....
रामू की आंखो में दर्द को देख महिला ने कहा , “अच्छा तो आज ही दो बजे मैं तुम्हारे घर चलूँगी, ठीक है” !
“अरे साहब ,आपकी बहुत बहुत किरपा होगी ,साहब , भगवान आपको अपने रूप में हमको मिला दिया” ...
“अरे नहीं ,मैं तो इसी काम के लिए इस गाँव में आई हूँ ,
कुछ भी हो तुम्हारा चबैना स्वादिष्ट था” , यह कहते हुये वह अस्पताल की ओर चल पड़ी।
रामू की आँखों में आज कोहरे सी उदासी नहीं थी , धुन्ध के छंटने के साथ साथ उसकी बिक्री भी बढ़ गई, वह बस दो बजने का इंतज़ार कर रहा था ,बच्चे भी स्कूल से लौट कर उसके ठेले के पास आ गए थे ,दोपहर का खाना बच्चे स्कूल में ही खा लेते थे , पत्नी के लिए वह दाल का पानी घर पर रख आया था ,और खुद ऐसे ही इधर उधर खा कर काम चला लेता था ,अपनी कमाई से शाम के चूल्हे का इंतज़ाम ही कर पाता था ,बाकी कमाई इलाज़ में चली जाती थी । वह दो बजे से पहले ही अपने बच्चों को साथ लेकर अस्पताल पहुँच गया ,दूर से ही डॉक्टर ने उसे देख लिया और उसे अंदर बुलाया ,
“तुम्हारे साथ दो बच्चे भी तो थे”,
“जी ,बाहर खड़े है,साहब” !
“अच्छा, चलो तुम्हारे घर चलते हैं” ,
“बच्चों! नाम क्या है तुम्हारा”?
“मेरा सीता और मेरा रमेश”
दोनों ने बारी बारी से जवाब दिया।
“दोनों जुड़वा हैं साहब ,चार में पढ़ते हैं ,
मेरा घर यहीं बगल में है साहब ,ज्यादा पैदल नहीं चलना पड़ेगा” ,
कुछ दूर पैदल चलने के बाद वह अपने घर पहुँच गया ,
वह तेजी से एक लकड़ी की कुर्सी ले आया और उसे एक कपड़े से साफ करने लगा,
“अरे नहीं रामू ! हम बैठने नहीं आए हैं , तुम्हारी पत्नी कहाँ है” ,
“भीतर है साहब ,
चलिये! अंदर चलिये” ,
रामू का घर पक्का और बहुत बड़ा था ,घर का रखरखाव ठीक न होने से पुराना सा लगता था ,यह कहने के लिए पर्याप्त था कि, कभी इस घर की आर्थिक दशा ठीक रही होगी।
एक पलंग पर अस्त व्यस्त बिस्तरों के बीच एक अत्यंत दुर्बल शरीर रह रह कराह रहा था।
“देखो कौन आया है , हमारे गाँव की नई डॉक्टर साहिबा ,तुम्हें देखने घर तक आई हैं!” ,
रामू की पत्नी ने धीरे से आँखें खोली और कराहते हुये बैठने की नाकाम कोशिश करने लगी ,बेचारी बैठ नहीं सकती थी ,शरीर में इतना दम ही कहाँ था ।
डॉक्टर ने आँख की पुतलियों को उठाकर देखा ,नब्ज़ देखी ,और अपने स्टेथोस्कोप को पीठ और छाती पर लगा कर कुछ चैक किया, बगल में मिट्टी का बर्तन पड़ा था जिसमे कफ पड़ा था , डॉक्टर ने रामू को कहा ,
“थोड़ा कफ एक छोटी डिबिया में रख कर मुझे दे दो” ।
फिर एक डिस्पोजल सूई निकाल कर खून का नमूना भी लिया और कुछ दवाइयाँ भी दी , खाने के बारे में समझा कर मुड़ी ही थी, कि कमरे की दीवार पर लगे एक प्राचीन चित्र पर उसकी नज़र पड़ी तो वह ठिठक सी गई ,और रामू से आश्चर्यजनक तरीके से सवाल किया,
“ये तस्वीर किसकी है” ?
“मेरे दादा की” ,
दादा?
हाँ,वे यहा के बड़े वकील थे ,
“तुम्हारे पिताजी” ?
“वो कानपुर में रहते हैं ,यहाँ कभी नहीं आते” ,
अच्छा? इतना कह कर जाने क्या सोचने लगी।
रामू हाथ जोड़ कर पूंछने लगा ,
“डॉक्टर साहब क्या ये ठीक हो जायेंगी”?
“देखो रामू मेरा नाम सुनीता है , तुम्हारी बीबी की तबीयत बहुत खराब है ,जांच रिपोर्ट आने के बाद पता चल पाएगा” ,
“डॉक्टर सुनीता जी ,इलाज़ में खर्चा कितना आएगा” ?
रामू ने डरते हुये सवाल किया ,
रामू के कंधे पर हाथ रख सुनीता ने कहा , “ये सब तुम मुझ पर छोड़ो ,तुम्हारा एक भी पैसा नहीं लगेगा”,
डॉक्टर की ऐसी बात सुनकर रामू ,उसकी पत्नी,और बच्चों के भीतर खुशी की चमक आँखों से झलकने लगी ।
मैं कल सुबह फिर तुमसे तुम्हारी दुकान पर मिलूँगी ,तब बता पाऊँगी कि, क्या स्थिति है। ऐसा कह कर डॉक्टर सुनीता ने अपना पर्स संभाला और चौराहे पर बस पकड़ने के लिए रामू के साथ चल दी। बस के आने पर रामू ने बस रुकवाकर सुनीता को विदा किया ,बस के चले जाने के बाद भी बहुत देर तक वहीं खड़ा रहा ,फिर देर शाम तक के कारोबार के बाद वापस घर चला गया । उस रात रामू पूरी तरह से सो नहीं सका ,बार बार डॉक्टर सुनीता की बात और दरियादिली के बारे मैं सोचता, बार बार उठ कर अपनी पत्नी के सिर पर हाथ रखता और कहता, तुम ठीक हो जाओगी ,डॉक्टर जरूर कुछ न कुछ करेंगी। ईश्वर को बार-बार धन्यवाद देता ,बच्चों को भी आने वाली खुशी का हवाला देता। जिसने जिंदगी में सिर्फ दर्द ही देखें हो वह मरहम को देखने से ही खुश हो जाता है , पैदा होने से पहले पिता का साथ छूट गया , कभी भी पिता का साया महसूस नहीं कर पाया ,माँ भी अपने पति के असमय वियोग से चल बसी, कम उम्र में अकेला रह गया ,इतने बड़े घर में ।पत्नी और बच्चों के साथ खुशियों पर बीमारी का ग्रहण लग गया ,जितना कमाता था बस इलाज़ ,इलाज़ और इलाज़...
देखते देखते सुबह हो गई, रामू रात में भीगा कर रखे हुये चने, मटर ,मूंगफली को सँजोने लगा ,बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने पर पत्नी के पास गया और हाथ थाम कर बोला, भगवान चाहेगा तो तुम जल्दी ठीक हो जाओगी। मैं चलता हूँ ।वह अपने साजो समान के साथ खुशी-खुशी भरे कोहरे में धीरे-धीरे अपने ठेले को लेकर चौराहे की ओर चल पड़ा।
रामू आज डॉक्टर सुनीता के आने का इंतज़ार कर रहा था ,सुबह से कई बस आ गई, पर सुनीता नहीं आ रही थी ,बेसब्री में रामू चबेने में किसी के चटनी डालना ही भूल जाता तो किसी के नमक । इंतज़ार के कोहरे में खुशियों की धूप छिपी थी ,उस धूप की गुनगुनाहट को रामू महसूस करना चाहता था ,क्यों कि वह और उसका परिवार गहन वेदना से गुज़र रहा था ।
बच्चे रोजाना की तरह आज भी स्कूल से अपने पापा कि चलती फिरती दुकान पर पहुँच गए थे,
“पापा मम्मी कब तक ठीक होंगी”? सीता ने पापा से पूंछा ,
“पता नहीं” ,रामू उदास स्वर से बोला ।
“जल्दी ही ठीक हो जाएंगी तुम्हारी मम्मी” , सुनीता ने पीछे से कहा
“अरे डॉक्टर सुनीता जी आप” !
“हम कब से आपका इंतज़ार कर रहे थे”,
“तुम्हारी पत्नी की रिपोर्ट्स जो लेनी थी ,वही लेने में देर हो गई । खैर तुम्हें बता दूँ कि तुम्हारी बीबी को क्षय रोग है, यानि टी बी ,
चिंता न करो अगर सही तरीके से इलाज़ कराओ तो पूरी तरह से ठीक हो जाएगा ,दवाएं मैं तुम्हें दूँगी और एक समय अपने हाथ से खिलाउंगी”....पूरी बात रामू हाथ जोड़े सुनता रहा ।
“तुम चिंता न करो रामू भैया ,मैं हूँ न ,शायद ईश्वर ने मुझे इसीलिए यहाँ भेजा हो” ।
इतना कह कर वो बोली ,”क्यों चुप चाप खड़े हो ,चबैना नहीं खिलाओगे” ,
रामू ने झटपट चबैना बनाकर एक लिफाफे में रख कर सुनीता के हाथ में पकड़ा दिया । बच्चों को पुचकारते हुये सुनीता ने कहा , “घर जाने से पहले मैं रोजाना एक बार तुम्हारे घर आऊँगी ,तुम्हारी मम्मी को देखने”।
रामू का घर ,अस्पताल और चौराहे में कोई विशेष दूरी नहीं थी।
दोपहर बाद डॉक्टर सुनीता हाथ में बड़ा दवाई का डिब्बा लेकर रामू के घर पहुंची और उसकी पत्नी को भाभी कह कर दवाई लेने के समय और तरीकों के बारे में बताने लगी ,रामू की पत्नी की पथराई आंखे सुनीता को एक टक देख रही थी , मानो पूंछ रही हों कि तुम कौन हो ? क्या रिश्ता है मेरा और तुम्हारा ?
सुनीता बार-बार दीवार पर लगे चित्र को देखती और कुछ सोचने लगती। सुनीता ने रामू से पूंछा तुम्हारे पिताजी का क्या नाम था “राम सेवक गुप्ता” कानपुर में वकालत करते थे ।
“तुमने कभी अपने पिता को देखा?” ,
“नहीं ,वो मेरे पैदा होने से पहले मेरी माँ को छोड़ कर शहर चले गए थे ,वापस नहीं लौटे” ।
और क्या जानते हो उनके बारे में ?
“ज्यादा कुछ नहीं ,सुना है अब वो इस दुनिया में नहीं” ।
सुनीता ने अपने हाथ से रामू की पत्नी को दवा खिलाई और कहा कि इतवार को अपने से दवाई खाना न भूलना ,बाकी सारे दिन मैं दवाई खिलाने आया करूंगी । पीछे रामू हाथ जोड़े खड़ा था, सुनीता के आने और दवाई खिलाने का सिलसिला लगातार चलता रहा । सुनीता अपने दादा की तस्वीर रामू के घर में देख समझ गई थी, कि यही उसके भी दादा का घर है ,रामू उसका सौतेला भाई है ,इस गाँव में पोस्टिंग लेने का उसका उद्देश्य भी यही था, कि वह अपने बिछुड़े हुए परिवार से मिल सके ,पर इतनी जल्दी और इस हालत में उसकी मुलाकात होगी, ऐसा सोचा ही नहीं था । वह अपने गाँव के बारे में जितना पापा से सुना था उतना जानती थी ,किन्तु उसे अपने किसी भाई भाभी के बारे में कुछ नहीं पता था ,कभी कुछ बातें होती भी तो उसे देख सब चुप्पी साध लिया करते थे ,किन्तु अब वह बड़ी और समझदार हो गई थी ,उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे बताए रामू को अपनी असलियत।
देखते देखते रामू कि पत्नी कि हालत में सुधार होने लगा ,वह बिस्तर छोड़ उठने बैठने लायक हो रही थी ,पर पूरी तरह से ठीक होने में अभी कुछ महीने बाकी थे। सुनीता अपने ससुराल से गाँव आया करती थी , उसके सामने अपनी बातों को साझा करने के लिए कोई नहीं था ।ओह! जीवन के कितने रंग हैं, न जाने कितने रंग देखने बाकी हैं,रामू और उसके परिवार की ये हालत का कारण कहीं मैं और मेरी माँ तो नहीं, यकीनन हम ही तो... .....क्या कारण रहा होगा जो पिताजी ने अपनी ही संतान और परिवार के बारे में कुछ नहीं सोचा
,कुछ भी हो वो मेरा भाई है ,और उसके बच्चे ,उफ़्फ़... मेरा क्या फर्ज़ बनता है ... मुझसे जो बन पड़ेगा ,मैं करूंगी ....
डॉक्टर के रूप में वह पूरे गाँव की सेवा कर रही थी ,कोई नहीं जनता था कि सुनीता कौन है, सबको चाचा , भैया भाभी और चाची सम्बोधन से बुलाती, उसे गाँव का बड़ा स्नेह मिल रहा था ,और गाँव को झोला छाप डॉक्टर से निजात मिल रही थी और गाँव की सेहत भी सुधर रही थी।
रामू की पत्नी को दवाई खिलाते लगभग 6 महीने होने वाले थे , अब रामू की पत्नी खुद सुनीता का स्वागत करती , रामू का घर अब सुव्यवस्थित लगता था, बच्चे भी साफ सुथरे कपड़े पहनने लगे थे, हो भी क्यूँ न, एक महिला जो बीमार थी अब ठीक हो गई थी ,जो घर की धुरी होती है । सुनीता के आने पर भावुक होकर जब भी रामू की पत्नी उसके पैर छूती तो सुनीता मना कर देती ,कहती अरे!
आप मुझसे बड़ी हैं । आप ने मुझे नया जीवन दिया है बहन जी ,वरना अब तक तो मेरे बच्चे बिन माँ के हो गए होते,कहते कहते रामू  की पत्नी भावुक हो जाती । सुनीता सब सुन रही थी किन्तु कई सवाल उसके माँ में सुलग रहे थे ...उसने रामू की पत्नी से पूंछा , ये बताओ , “तुम्हारे खेत-वेत और बाग भी तो है न ...... उसने अपने पिता से इन सब के बारे में सुना था” ...
“हाँ डॉक्टर साहब ,बाग तो बहुत पहले बिक गया था , और खेत जितने भी थे रेहन पर हैं” ,
“रेहन” ?
“जी गिरवी पर”,
मेरी बीमारी का खर्च इतना ज्यादा था, कि उन्हें गिरवी रखना पड़ा ,जहां जहां भी दिखाया मर्ज पकड़ में नहीं आया और तबीयत ज्यादा
बिगड़ती गई।
कितने रुपए में गिरवी हैं तुम्हारे खेत ?
“15000 रूपये में” ।
‘ओह !सिर्फ 15000 में’ ,
“जी ,गिरवी में कोई ज्यादा पैसे नहीं देता ,
खेत थे तो साल भर का खाना खर्चा खेत से निकाल जाता था” ,
“मैं तुम्हें 15000 रुपये दूँगी तुम अपने खेत छुड़वा लेना ।
ठीक है मैं चलती हूँ”।
शाम को रामू के घर पर आने पर जब रामू की पत्नी ने सुनीता की बातों के बारे में बताया तो रामू चिंता में पड़ गया ,और कहने लगा कि मैं अपने खेत स्वयं छुड़वा लूँगा ,क्यों डॉक्टर साहिबा से पैसा लें ,उनका वैसे भी बहुत कर्ज़ है हमारे ऊपर ,जिसे हम ज़िंदगी भर नहीं उतार पाएंगे।
अगले दिन जब सुनीता रामू के घर आई तो रामू भी घर पर ही था ,सुनीता ने जब अपने पर्स से पैसे निकले तो रामू ने हाथ जोड़ कर निवेदन किया ,
“नहीं डॉक्टर साहिबा नहीं ,आपके बहुत एहसान हैं हम पर ,अब और न डालिए ,मैं जीवन भर के लिए वैसे भी आपका ऋणी हूँ”।
“ले लो रामू ये मेरा फर्ज़ है ,ये तो कुछ भी नहीं ,बहुत कर्ज़ तुम्हारा भी मुझ पर है” ।
रामू कुछ समझ नहीं पाया । “हम गरीब लोग आपको क्या कर्ज़ दे सकते हैं साहब”,
“तुम नहीं समझोगे ... तुम रख लो मेरा कहा मानो” ....रामू ने रुपये रख लिए और अबूझ सा स्तब्ध सुनीता को देखता रहा ,उसकी आंखो से पानी बह रहा था , उसे रोता हुआ देख सुनीता की आँखों में भी पानी आ गया ,
सुनीता ने रामू को कमरे में लगी तस्वीर को दिखाते हुये कहा ,
“जानते हो रामू मेरे कमरे में भी यही तस्वीर लगी है ...
यही मेरे भी दादा हैं ,
मेरे पिता का नाम भी राम सेवक गुप्ता था ,
अब दुनियाँ में नहीं हैं लेकिन मेरा पास बहुत कुछ है जिसके असली हकदार तुम हो रामू”
रामू को सब कुछ समझ में आ गया ,वह जानता था कि उसके पिता ने कानपुर जा कर दूसरी महिला से शादी कर ली और सामाजिक भय से कभी गाँव नहीं आए ,
“तो क्या तुम?”......
“हाँ! रामू हाँ! मैं तुम्हारी बहन हूँ ...छोटी बहन” ...
सुनीता ने रोते हुये रामू से कहा,
“मैं अपने पिता से विरासत में मिला सब कुछ तुम्हें लौटना चाहती थी, इसीलिए इस गाँव में आई ,और ईश्वर ने सबसे पहले तुमसे ही मिलाया” ......
“तुम्हारे दुखों का समय अब खत्म हुआ, रामू! तुम अब बड़ी सम्पदा के मालिक हो ,
तुम्हारे पिताजी तुम्हारे लिए इतना छोड़ कर गए हैं जिससे तुम पूरा जीवन आराम से गुज़ार सकते हो” , दोनों बच्चों को सुनीता ने गोदी
में लेकर बहुत पुचकारा ,
इतने वर्षों बाद अपनों का प्रेम पाकर रामू की आँखों से खुशियाँ फूट कर बह रही थी।
सुनीता ने आँखें बंद की और अपने पिता को संबोधित करते हुये कहा,
“देखा पिताजी मैंने अपना फर्ज़ पूरा किया, कर्ज़ तो जितना भी चुकता करूंगी अधूरा ही रहेगा”


अनिल कुमार सिंह
सी 3 आकाशवाणी कॉलोनी
बेगमगंज गढ़ैया
फ़ैज़ाबाद 224001
9336610789

तुझे नेता बनना .........

मचा बवाल ,
कुछ कर कमाल,
ज़ोर शोर से झूठ बोल,
सिलवा ले खद्दर का खोल
तुझे नेता बनना........
बेजह नाच
कर भीड़ बढ़ा
भले आँगन टेढ़ा ,
दो चार मरें
या दबे कुचले ,
क्या बिगड़े तेरा ,
बस घड़ियाली आँसू को बहा ,
तुझे नेता बनना .......
जेल बेल
सत्ता के खेल
इनसे नहीं डरना ,
गर मिले मुफ्त में
गाली भी
तो ले लेना ,
रख स्याही ,
थप्पड़ की भी आस ,
तुझे नेता बनना .........
अनिल कुमार सिंह

"खुशियों की तलाश करें"






मरीचिकाओं में
तरसती प्यास ,
आंसुओं की बूंद से
बुझती नहीं है ,
दर्द के सायों को
बदन पर लपेटे,
चलो आज
खुशियों की तलाश करें...

सर्द कोहरे ने
अपने साये में
छिपायी जरूर होगी
गुनगुनी धूप,
ठिठुरते हुये ही सही ,
चलो आज
उस धूप की तलाश करें ...

दरकते छत की
दरारों में श्वांस लेते
मकड़ी जैसे
कितने जीवन,
निराशाओं के ढेर में
चलो आज
आशाओं की तलाश करें ,
चलो आज
खुशियों की तलाश करें...


अनिल कुमार सिंह

माटी के दीपक

छलकते जाम से कतरा बचा कर
छटपटाती प्यास को प्याले दे दो,
मस्तियों की थालियों के शेष से,
भूख से बिलखते को निवाले दे दो,
खामोश आशियानों से ये कह दो ,
चहकते छप्परों को ताले दे दो ,
जगमगाती रोशनियों से चुरा कर ,
माटी के दीपक को उजाले दे दो ,
जो कहते गरीबी को मानसिक अवस्था ,
उनके पीठ और पैर में छाले दे दो ...........
दे दो दुनिया को ये खबर .....हाँ ये खबर, मेरे हवाले दे दो .......
अनिल कुमार सिंह

हम इतने सहिष्णु भी नहीं

हे ज्ञानी कवि !
इतना सूक्ष्म भी न लिखो
कि हवा हो जाए,
इतना स्थूल भी न लिखो
कि दिमाग की परतों
की बारीक सलवटों में
घुसने भी न पाये ,
तुम्हारा लिखा
तुम ही न समझ पाओ,
ऐसा ज़ुल्म भी न करो ,
हे ज्ञानी कवि !
कुछ दया करो ,
हमारे अल्प ज्ञान पर ......
..........................
..........................
हम इतने सहिष्णु भी नहीं ................

अनिल कुमार सिंह

Saturday 5 December 2015

मुहब्बत का हिसाब

बेहिसाब का हिसाब करते हाे,,
खुद को मुहब्बत की किताब कहते हाे,
मेरी मुहब्बत तो बेहिसाब दाैलत है,
क्यों हिसाब पर हिसाब करते हाे.....
अनिल

असहिष्णुता

उसको बारम्बार नमस्कार ,
जिसने किया
असहिष्णुता का अविष्कार,
हे चतुर साधक ,
तुम्ही हो असली हकदार,
काश!
तुम्हें ही मिल जाते ,
लौटाए गए पुरस्कार............


 नोट: मेरा सहिष्णुता नापने वाला मीटर खो गया ..... लगता है आजकल संसद में है ..... बड़े चोर हैं भाई ...


अनिल कुमार सिंह

विवशता

पीठ के छालों ने पूंछा करवटों का पता ,
वो चूल्हे की ओर इशारा कर के रो दिया ,
गोदाम को अनाजों से भर आया था लेकिन ,
बच्चों का पेट भर के खुद भूखा सो गया।
अनिल कुमार सिंह

मेरी यादों को सीलन से बचाते रहना


नई दुनियाँ , नई यादों का समुंदर होगा ,
चाँद के पहरे में सितारों का मंज़र होगा ,
नम रातों में नम मुलाक़ातें होंगी ,
महकी फिज़ाओं में बहकी हुयी बातें होंगी ,
मेरी यादों को सीलन से बचाते रहना,
तुम इन्हें धूप ओ' छाँव दिखाते रहना.........

वरना सर्द मौसम में कोहरे की परत जम जाती है ........

अनिल कुमार सिंह
art by self