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Wednesday 20 January 2016

चाँद

खामोश खिड़की उदास स्वर से कहती है ,
यूं ही बेवजह वक़्त जाया न करो,
कि इस खिड़की से, अब चाँद नहीं निकलेगा ,
तुम इस मोड़ पर ,अब कभी आया न करो,
अब यहाँ रात और दिन हैं अमावस के पहर ,
कि चाँद चमकता है ,अब किसी और शहर ,
किसी और के घर........
हाँ , एक वादा भी ...
कसम है , उसका पीछा न करना....
कि चाँद ,अपनी परछाई से बहुत डरता है ......

अनिल कुमार सिंह

निर्धन

हाथ की लकीरें
पत्थर उठा कर
घिस गई ,
चूल्हे की रोशनी में
किस्मत दिखाई देती है ,
मौसम गला देते हैं
हाड़ मांस चमड़ी
धूप के टुकड़े में
छत दिखाई देती है ,
सिरकी और बांस के
घर ये बोलते हैं
निर्धन वही हैं जिन्हें
इज्ज़त दिखाई देती है .......
अनिल कुमार सिंह

बेजान मुहब्बत

सूखे पत्तों को छू कर,
फिसलती हैं बूंदे भी
बारिश में भी बेजान
नहीं भीगने वाले,
न बरसाओ यहाँ और
मुहब्बत की बरसातें
आँखों की नदी लेकर
कहीं दूर बरसते हैं.....

अनिल कुमार सिंह

Wednesday 6 January 2016

सेल्स गर्ल्स

सुबह से शाम तक
उसको सिर झुकाते देखा,
ज़ख्मी हाेठों से
हरपल मुस्कुराते देखा,
बेबसी जुल्म काे
सहने का हुक़्म देती है,
जुल्म से लिपटा हुआ
रोजी का टुकड़ा देखा।

घर के चूल्हे
उदर की आग से
जलते नहीं हैं,
राेती आंखों में
सपने कभी
पलते नहीं हैं,
जो भी आया
खरीदार इन दुकानों में,
उसने कई बार सिर्फ
जिस्म और मुखड़ा देखा......
...
अनिल कुमार सिंह