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Sunday 27 March 2016

वोट बैंक

मर गया?
मर जाने दो,
उसके दर से वोट बैंक का
रास्ता नहीं गुजरता,
सियासत गर्म होने दो,
आम आदमी उबलने दो,
कि सियासत मरने वाले का वर्ग देखती है,
नफे नुकसान और विभव काे देखती है,
मरो या जियो किसे फिक्र है तुम्हारी ,
हॉं, तुम्हारा घर वोट बैंक के रास्ते पर नहीं पड़ता.....

अनिल कुमार सिंह

Thursday 17 March 2016

दूर रहो मुझसे..

मैं मुहब्बत हूँ, मेरी रूह  से गुजर जाओ,
गर बदन को देखते हो, दूर रहो मुझसे....

मैं आइना हूँ मुहब्बत का, संवर जाओ,
गर  दरार देखते हो ,  दूर रहो मुझसे.....

वो मयखाना हूँ, कि बिन पिये बहक जाओ,
गर शराब मांगते हो, दूर रहो मुझसे....
अनिल

Sunday 13 March 2016

नारी शक्ति "ये सदी हमारी है"

टाँक दो नभ के सितारे आज अपने आँचल में ,
उतार दो इन बादलों को आज अपने काजल में ,
आज हमने हौसलों के पंख हैं लगा लिए,
गगनचुंभी पर्वतों ने शीश हैं झुका लिए ,
रूढ़ियों के पत्थरों को पिघलाने की तैयारी है,
नारी शक्ति की हुंकार है "ये सदी हमारी है" ! ये सदी हमारी है !

अनिल कुमार सिंह...

रात

रात के इंतजार में,
शाम का रिहर्सल है,
सूरज की रोशनी में,
सितारों का दम घुटता है,
रात के हुक़्म तक,
चाँद को परदे में रहने दो,
कि चाँद का श्रृंगार अधूरा है,
शाम रात के पल्लू में,
टांकती है सितारे,
लगाती है काजल
मैं ढूंढता हूं दियासलाई,
ढिबरी और चूल्हा जलाने के लिये....
रात के आने से बड़े खुश हैं,
उल्लू शियार और चमगादड़....

अनिल

मैं इश्क हूँ

मैं इश्क हूँ, हवाओं में बसर करता हूं,
सांस के साथ ही सीने में उतर जाऊंगा....
मैं बादलों के साथ,आसमां में बहता हूँ ,
तुम जहां मुझको पुकारोगे बरस जाऊंगा ...
बनके खुशबू तुम्हारे आस पास रहता हूँ,
तुम जरा पास बुला लो तो बिखर जाऊंगा.....
अनिल..

ताबूतों के लिए तिरंगा सुरक्षित है

मैंने देखा है ,
सरहद पर पिघलते बारूदों को,
बेबसी में बिलखते ताबूतों को,
खून से सने कपड़ों ,
और मोर्टार के टुकड़ों पर ,
हाँ, उन पर लिखा देखा है मैंने ,
"कि आज़ादी यहीं से जन्म लेती है "

और जवान होती है वही आज़ादी,
बेफिक्र चोर उचक्कों में ,
धोनी के छक्कों में ,
आग लगाते आंदोलन में,
धरनों और प्रदर्शन में,
लाल बत्ती के काफिलों में,
विजयपथ की महफ़िलों में,
सरे आम अत्याचारों में,
मासूमों से बलात्कारों में,
जे एन यू के नारों में ,
हाँ ,जवां आज़ादी खुद को ढूंढती है,
और फिर देखता हूँ ,
लाल चौक के लिए तिरंगा रोता है,
"भारत माँ की जय" का नारा सुबकता है ,
बस्तर के जंगलों में ,
देखता हूँ बारूदी सुरंगों को,
जिस पर लिखा है ,
" आज़ादी यहाँ दम तोड़ती है"
हाँ, ताबूतों के लिए तिरंगा सुरक्षित है.. .........
अनिल कुमार सिंह.

तूँ बहुत दूर है मुझसे

तूँ बहुत दूर मेरी निगाहों से
कोहरा कटता है मेरी आंहों से ,
बदहवास रूह जिस्म बेचैन है ,
तेरी खुशबू से महकती रैन है ,
चाँदनी तेरा नाम गुनगुनाती है,
लिपट कर मुझसे मुझे जगाती है ,
उठ कर देखो कि क्या नज़ारे हैं ,
ज़मीं पे नाचते सितारे हैं,
कलियाँ चटकी हैं आज रातों में ,
शहद सा घुल गया है बागों में ,
यूं लगा कि जैसे तुम आई,
हाय ! दूर तक मुस्कुराती तनहाई ,
यूं ही मेरी यादों से लिपट कर रहना,
तेरी यादों से महकती हर शाम मिले,
मैं जानता हूँ कि, तूँ बहुत दूर है मुझसे,
तेरे एहसास की बाहों में,मुझे आराम मिले ...........
अनिल कुमार सिंह

सूखी नदी


तेरी यादों को पीने की आदत सी हो गई

छिपाए फिरते हैं इक नशे को ज़माने से ,
मेरी ज़िंदगी भी जैसे सियासत सी हो गई,
तेरी खुशबू मेरी रूह में शामिल है हरदम,
तेरी यादों को पीने की आदत सी हो गई............
अनिल