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Saturday 7 May 2016

न मालूम, कोई कैसे भूल पाता है

इश्क़ तमाम उम्र रोया है यादों से लिपट कर,
अजीब सुलगन है आँसुओं से बुझती ही नहीं  ,
भला , भूल कर भी भुला पाया है कोई हमदर्द ,
"भुला देना हमें" यूं ही कहते हैं बिछुड़ने वाले ,
जैसे जुदा होने की कोई रस्म हो शायद,
तूँ मेरी रूह में शामिल है बेखबर इस कदर ,
आईना देखता हूँ,तूँ सामने मुस्कुराती है ,
 न मालूम, कोई कैसे भूल पाता है ..........

अनिल

फिर कभी न मिलने का वादा मुक़र्रर है "

मैं उसी दर पर नमीं की तलाश करता हूँ,
यकीनन,वहीं छलके होंगे तुम्हारे आँसू,
जो छलके नहीं थे उस वक़्त ज़माने के डर से ,
फिज़ाएँ बयां करती हैं ,बिछुड़ने की दास्ताँ ,
कि,मुहब्बत अब भी वहाँ पे रोती है ,
जहां दफ़न हुये थे आंसुओं के कतरे,
हाँ, अब उस मिट्टी से मुहब्बत की ताबीज़ बनती है ...
"फिर कभी न मिलने का वादा मुक़र्रर है "

अनिल

जिन्दगी

तूं मुझे अपनी सी सूरत में नज़र आती है,
लिखने वाले तुझ पर नज़्म लिखा करते हैं,
काश! तेरी रूह से गुज़र सकते ये शायर सारे,
बेवजह लफ्ज़ों से, तेरा जिस्म तराशा करते हैं....

अनिल

Thursday 5 May 2016

लहरों सा जिया जाए

नाव किनारे पर खड़ी करके चले आआे,
कुछ पल तसल्ली से लहरों को गिना जाए,
डूबती उतराती और खो जाती किनारों पर,
मौत से पहले हंसती हुई लहरों सा जिया जाए......

अनिल कुमार सिंह.

ज़िन्दगी तुझसे मुहब्बत है

कितना सताया, फिर दुलराया,
हंसते हुए चुपचाप रुलाया,
तूं भी मुहब्बत की तरह निकली
ऐ ज़िंदगी,
मैं तुझसे हार नहीं सकता,
मैं तुझसे जीत नहीं सकता,
एक तूं ही तो मेरी हमसफ़र है,
ऐ ज़िंदगी,
मुझे तुझसे मुहब्बत है.....
मेरे साथ साथ चलना......

अनिल कुमार सिंह.

मैं कविता हूँ

विरासत लुट गई कब की...
बस शेष हैं तो दीवारों पर
सहमी सी कुछ तस्वीरें...
मैं कविता हूँ....
जीना चाहती हूँ...
बस, तस्वीरों पर गर्द ठहरने न पाये....

अनिल

मैं बेवफा नहीं

मैं बेवफा के नहीं, ऐ जमाने तूं सुन ले,
मैंने तेरी तरफ देखा, मुहब्बत बिछुड़ गई....

मैं तेरी मुहब्बत के सिवा कुछ नहीं ऐ दोस्त,
तूं इस कदर से मेरी सांसों में घुल गई.....

अनिल