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Sunday 31 July 2016

होली

शरमायी सकुचाई तरंगिणी ,
यमुना का हुआ रंग गुलाबी,
झबर झबर गेहूं की बाली ,
बलखाएँ  जैसे कोई शराबी ,
वन पलाश दहके दहके से,
तन में जैसे आग लगी
मन पपीह बोले अति व्याकुल ,
कितनी भीषण प्यास लगी,,
अंग लगे मुसकाए गुलाल के
रंग को मादक रंग चढ़ा,
होली   गले मिलें सबसे ,
कौन है छोटा कौन बड़ा ,


अनिल कुमार सिंह

आलिंगन है कहाँ जरूरी ?

गगन धरा का मिलन
कब हुआ था?
कब हुआ है?
भ्रम ही था , कि
दूर क्षितिज पर,
गगन ये
धरती से मिलता है ,
हाँ!
गगन के स्वप्नों से ही
धरती ने
श्रृंगार किया है ,
सजल गगनमेघों ने
झुक कर ,
धरती को
प्रतिप्यार  दिया है.,
रही परस्पर
निश्चित दूरी,
आलिंगन है
कहाँ जरूरी .....

तुम स्वप्न ,मैं सत्य

केश राशि आकाश सी विस्तृत,
मस्तक पर है चाँद का टीका,
सजे हुये आँचल पे सितारे,
शीतल मद बयार की खुशबू,
आसमान में तुम छाई हो ,,,,,

फिर दूर कहीं दिखता है मुझको,
एक बड़े तालाब किनारे,
विशाल सूखा वृक्ष अकेला,
निर्जीव नीड़ लिए बाहों में,
मुझको लगता मेरे जैसा ,

आसमान क्यों स्वप्न दिखाता,
धरती कितना सत्य .......
तुम मेरे लिए स्वप्न हो सचमुच ,
मैं मेरे लिए सत्य .......





भूख है या है मुहब्बत

भोर की पहली किरण से,
मुस्करा कर खिल गई,
फिर हुआ मदहोश भँवरा ,
भूख है या है मुहब्बत,,,,,,,

जल में जल की प्यासी सीपी,
मुंह खोलती एक बूंद को ,
और पनपता एक मोती,
भूख है या है मुहब्बत.....

तड़ित तरंगों के चुंबन और,
श्यामवर्ण आकाश के बादल ;
प्यास बुझाते हैं धरती की ,
भूख है या है मुहब्बत ....

भूख मुहब्बत के पहले चलती है,
जहां भूख है, मुहब्बत वहाँ पलती है ........



सुनो गगन !

सूखा दिन झुलसा, सूरज का बोझ उठा कर,
थकी शाम आतुर है रात जलाने को ,
आँख के आँसू कम पड़ते हैं,सुनो गगन !
बरसा दो तुषार ,आग बुझाने को ,
झुलसे पर्णों, झुलसे स्वप्नों को, दे दो जीवन,
जल चुकी सुगंधि, फिर महका दो मन उपवन ,
मंद रहे शीतल बयार, शोर न मचने पाये,
शाख के पंछी को पत्तों की चोट न लगने पाये,
सूरज के उगने से पहले रात न जगने पाये..........
सुनो गगन !

अनिल

चिनाब और चिनारों की रौनक चली गयी

सांस घुटती है खुले आसमां के तले,
चीखों के दरवाज़ो पर ये ताले कैसे,
देवदार के सीने पर गोलियों के निशां,
आंसुओं से उफनते ये नाले कैसे,
कब पिघलेगी न जाने ये बर्फ बारूदी,
चिनाब और चिनारों की रौनक चली गयी,
संगीनों के साये में मुहब्बत हो भी तो, हो कैसे ..
पत्थरों की जगह फूल उठाओ तो कोई बात बने...

अनिल

करगिल ...

खूँ से अपने जहां लिख दिया था “जय हिंद“,
शहीदों के उन निशानों को, हम मिटने नहीं देंगे,
बेशक चले जाओ जहां है तुम्हारी जन्नत,
ये ज़मीं जन्नत है हमारी, हरगिज़ नहीं देंगे,
गर मादरे वतन से तुमको नहीं मुहब्बत,
कसम शहीदों की, तुम्हें जीने नहीं देंगे.......
अनिल

झोलियों में स्वप्न

झोलियों में स्वप्न लादे,
शांत चित्त में लक्ष्य साधे,
वज्र कर अपने इरादे,
चल पड़े हम भी अभागे,
आत्मा आकाश कर लें ,
खुद को इक संसार कर लें,
प्रेम की सरिता बहाकर ,
जिंदगी साकार कर लें ..
रास्ते कब तक छलेंगे ,
मरते दम तक हम चलेंगे,
जब ये तन निर्जीव होगा,
दीप बनकर हम जलेंगे.
अनिल

अंजान सी मंजिल, बड़ा अंजान सफ़र

अंजान सी मंजिल, बड़ा अंजान सफ़र,
बेचैन कर देती हैं, ये गलियाँ, ये डगर,
बड़े हक़ से खींच कर, मेरा दामन,
न जाओ छोड़ कर , कहता है, ये मेरा शहर.....
अनिल

ईद

शहर में चर्चा है, हाँ, चाँद निकल आया,
तुम छत पर आ जाओ कि मेरी ईद हो जाए.....
अनिल

यादों के मौसम

तारीखों से लिपटे हुए मौसम सुनो ,
धुंधलाती तस्वीरों से क्यों गर्द हटाते हो?
साल दर साल यही कृत्य दोहराते हो,
नई तस्वीरें बनाते तो अच्छा होता,
मैं गुज़रे हुए अतीत से निकलना चाहता हूँ.
(यादों के मौसम तुम सताया न करो)
अनिल

तुम अपनी दुकानों को, ऐसे ही चमकने दो

तुम अपनी दुकानों को, ऐसे ही चमकने दो,
बहुत छोटा है मेरा घर, मेरी उम्मीद की तरह,
मेरी उम्मीदें जवां होती हैं, फुटपाथी बाज़ारों पर,
सच कहूँ तो रात का चाँद भी, सूरज दिखाई देता है.
अनिल

काश! वही किस्सा, फिर से जवान हो जाए

काश! वही किस्सा, फिर से जवान हो जाए,
जर्रा जर्रा ये ज़मीं, आसमान हो जाए,
एक भूली हुई दस्तक से, खिल उठे दर मेरा,
वो जो बिछड़ा था कभी , मेरा मेहमान हो जाए.....
अनिल

नर्म पैरों के लिए, खुदकुशी किया करता है कोई

काँप कर कलियों ने
होठ अपने खोल लिए,
ये किसका बाँकपन,
चमन में जादू कर गया,
और फिर झूमकर बरसा,
गगन से पानी,
बांधे मौसम को दुपट्टे से,
चला करता है कोई..

न संवरना आईने में,
नाज़ुक हैं चटख जाएंगे,
भला तुम्हें देखकर,
क्यों कोई अंगड़ाई न ले,
हैैरान था देखकर,
राह में कुचले फूलों को,
नर्म पैरों के लिए,
खुदकुशी किया करता है कोई....
अनिल

चाहतें घुटती हैं

चाहतें घुटती हैं जेब के गलियारों में,
सबसे पहले कीमत पे नज़र पड़ती है,
बस यही कह कर मैं अक्सर चल देता हूँ ,
“नहीं नहीं मैं कुछ और पसंद रखता हूं” .....
अनिल

तुमसे मिलने के लिए , हम बड़ी दूर से आए

गले मिल के भीगी लहरें ,
किनारों से कहती हैं,
तुमसे मिलने के लिए ,
हम बड़ी दूर से आए.....
अंजाम से वाकिफ़ थे,
तेरी बाहों में दम निकले,
इसी ख्याल में हम न जाने,
किस किस से टकराए...
बरसों इसी तसल्ली में
जागा किये थे हम,
कि अब तूं नज़र आए,
कि अब तूं नज़र आए........

अनिल

चाँद सुनाता रहा तेरे किस्से रात भर

चाँद सुनाता रहा तेरे किस्से रात भर,
कितनें फासले से तेरे आस पास रहता है,
नाम लिखता है कोई मेरा हवाओं में,
लिपट कर तकिये से कोई रात भर सुबकता है,
कई टुकड़े कागज़ों के अपने हाथ में लिये,
मेरा पता जानने की मिन्नतें वो करता है,
बेखुदी में हरदम रहता है ख्यालों में,
आइने में अब कभी सजता न सँवरता है,
रोक लेता है अपनी धड़कनों के शोर को,
जब भी कोई उसके करीब से गुजरता है,
रात निकल गई तेरी चाहत के किस्सों से,
ऐसे भी भला कोई मुहब्बत किया करता है..
चाँद सुनाता रहा तेरे किस्से रात भर...💞💞💞

अनिल

तेरे घर का पता

न थका, न हारा
पूछते पूछते,
तेरे घर का पता
न जाने कहाँ चला गया,
तेरी खुशबू की डगर पर
चल देता हूँ अक्सर,
कमबख्त ये हवाएँ भी
रुख बदलती हैं.......
अनिल

तेरी तस्वीर बचाए रखी है

ख्वाबों के बिखरे आशियाने में,
तेरी तस्वीर बचाए रखी है.....
हम तो कब से तेरे दीवानें हैं,
ये बात तुझसे छिपाए रखी है.....
है यकीं खुद ही चले आओगे,
आस दिल में बनाए रखी है....
अनिल
जो फूल राहों में सजाए थे कभी, तुम्हारे इंतजार में सूख गये, है यकीं ये फिर से मुस्करा देंगे, इक बार चले आआे....
मेरे महबूब तुझे मेरी मुहब्बत की कसम....



अनिल 

कोई हाथ मेरे सिर पर हो

क्या चुक गये
आशीर्वाद
गुलाब
स्नेह
तारीफ
हौसले
............
जिनसे लाद दिया था मुझे,
मेरी सफलताओं पर.....
कहाँ खो गये
मुझे जब
जरूरत है
....
असफलताओं में
ढूंढता हूं
कोई बांह
मेरी ओर बढ़े
कोई हाथ
मेरे सिर पर हो....

अनिल

तुम रात बिताने की खातिर न आये होते

तुम रात बिताने की खातिर न आये होते,
मैं शाम की चादर को यूं ही ताने रहता,
शाम के सिंदूर को माथे पर सजा लेते,
तो रात नहीं होती , न चाँद ही निकलता .....
अनिल

जीवन बसंत को दोहराता तो नहीं

हवाओं से बनी तस्वीरों को बाहों में समेट कर,
खुली आँखों को ठकठकाते हैं अधूरे दिवास्वप्न,
मचल कर उठती हैं लहरें सिंहरते रोमकूपों से,
बंजर हवाओं में ये कैसी बौर की खुशबू,
असमय ही बसंत का आभास ये कैसा,
जीवन बसंत को दोहराता तो नहीं,
मन का आयाम शायद विस्तृत हो गया..........

मन को हद में रहने की आदत भी तो नहीं......
अनिल

आजादी कैसे आई

एक बात आज तक
समझ में नहीं आई,,
क्या लाला लाजपत राय ने,
सिर पर मालिश थी करवाई,
या जलियांवाला बाग में
बजी थी हर्ष बधाई,
अगिनित वीरों ने देशहित,
क्या मुफ्त में जान गंवाई,
कितना खून बहा तब जाकर,
आजादी थी पाई ,
फिर समझा दो कैसे आजादी,
अहिंसा से आई......
बहुत बलिदान हुआ था भाई.....

अनिल

अब वो खुशबू मेरे साथ नहीं चलती है

जो महकती थी मेरे साथ हमकदम बनकर,
अब वो खुशबू मेरे साथ नहीं चलती है,
बस यही बात मेरे रास्तों को ख़लती है...
तेरा मिलना भी इक उम्र के लिए तो न था,
इसी तसल्ली से तेरी याद आँख मलती है....

तूं मेरी रूह में शामिल है मुहब्बत की तरह ,
हाँ तुझे देखने को प्यास मेरी जलती है...
अब वो खुशबू मेरे साथ नहीं चलती है,
बस यही बात मेरे रास्तों को ख़लती है.......
अनिल

शायद वो चले आएं

ओ थकती हुई राहों औ डगमगाते कदमों,
थोड़ी दूर साथ दे दो, शायद वो चले आएं।
यादों के घने जंगल, ख्वाबों के झुके महलों,
इक बार मुस्करा दो, शायद वो चले आएं ।
शरमाए तो नहीं तुमसे, सुनो चाँद औ॓॓र सितारों,
तुम आँख बंद कर लो, शायद वो चले आएं ।
अनिल

आसमां, अपने सितारों को संभाले रखना

आसमां, अपने सितारों को संभाले रखना,
हमको मुहब्बत है ज़मीं से, ज़मीं हो जाने तक.....
अनिल

बुझ गये वो चिराग

और कितना जलें हम रोशनी के लिए,
बुझ गये वो चिराग जो साथ जला करते थे,
ढूंढते फिरते हैं उनके कदमों के निशान
राह बताते हुए जो साथ चला करते थे.....
अनिल

अमलतास

मदहोश हुये जाते हैं ,
अमलतास के फूल,
नर्म हवाओं की बाहों में ,
रिमझिम की धुन पर
थिरकते थिरकते
बिखरे हैं ज़मीं पर,
बूंदों से लिपट कर,

एक नशा है मुहब्बत ,
जान ले लेता है ..................
anil

संभल कर चलना आ गया

क्या हुआ, कुछ ठोकरें ही तो मिली थी भीड़ में,
बिल्कुल अकेले भी संभल कर चलना आ गया .
अनिल

जिनको सूरज जाना था , सब डूब गये

सुलगते अंधेरों में घुटता है दम,
आँख जलती है रोशनी की खातिर,
जिनको सूरज जाना था , सब डूब गये
.... अनिल

चाँद जाने कहाँ खो गया

शाम के दर्पण में ,
संवर रहा था चाँद,
कि सितारों ने,
आँचल सजाने से
इंकार कर दिया,
रात के दर्द ने
आसमां को
कर दिया मेघमय,
ये मेघ चकई की
आँखों से बरसे .... ,

चाँद जाने कहाँ खो गया .......
अनिल

कमजोर दिल सत्य

छद्म चेहरों ,छद्म बातों ,
छद्म मुस्कुराहटों से,
सत्य मिलता है उलझ कर
अपनी साँसों से,
नत मस्तक खड़ा रहता है
सड़क के किनारे,
देखता है फर्राटा भरते,
लोभ,दंभ और अनाचार को ,
उसके लिए सड़क
खून से सना हुआ अखबार है,
सत्य में अब वो साहस नहीं,
अत्यधिक कुचले जाने से ,
कमजोर दिल हो गया है
अपनी ही मौत की खबर को अखबारों में पढ़ नहीं पाता ....

अनिल

जायें तो कहाँ जायें

ये ख्वाब, ये रात के बिखरे हुए गेसू...
बाहें पसारे चाँदनी का धुंधलका,
चकोरे की आंखों में आंसुओं के मोती,
और
गुनगुनाती हुई रातरानी की खुशबू,
हर शै मैं मुस्कुराता हुआ,
तुम्हारा ही अक्स...
दीवाना बना देते हो,
जायें तो कहाँ जायें........ 


अनिल कुमार सिंह

मुड़कर जरा देखो

तुम मेरी जरूरत हो धड़कनों की तरह
जो पास नहीं आते, मुड़कर जरा देखो...
बरसे कहीं पे बादल, धरती को चूम कर,
मेरी आँख में पानी है, मुड़कर जरा देखो...
तेरी मंजिलों की राह में, कब से खड़े हम,
क्यों इतना सताते हो, मुड़कर जरा देखो.....
अनिल

मैं इश्क हूँ

मैं इश्क हूँ, हवाओं में बसर करता हूं,
सांस के साथ ही सीने में उतर जाऊंगा....
मैं बादलों के साथ,आसमां में बहता हूँ ,
तुम जहां मुझको पुकारोगे बरस जाऊंगा ...
बनके खुशबू तुम्हारे आस पास रहता हूँ,
तुम जरा पास बुला लो तो बिखर जाऊंगा.....
अनिल..

टूटना ना आसमां से

कहीं टूटना ना आसमां से, मुझसे मिलने के लिए,
कि सितारे जमीं की राह में खाक हो जाया करते हैं
न न, मुझे आसमानी बना देने की जिद्द भी न करो,
बहुत आसान है तुमको, ज़मीं से देख पाना....
अनिल

मुहब्बत के इशारे

हवाओं में महकते हैं, मुहब्बत के इशारे ,
छिपा कर चेहरा, खिड़की से झांकता है कोई,
राह तकती हैं बेचैनियाँ, आहटों की सांस से,
किसकी दस्तक है, इसी ख्याल में जागता है कोई...
खूबसूरती को घेर लेते हैं, अनचाहे से पहरे,
नज़र उठाते ही, डर से झुकाता है कोई,
तेज़ धड़कनों से ठिठक जाते हैं, कुछ पल को कदम,
जाने क्या सोच कर, फिर नहीं आता है कोई....
मुहब्बत! तूं इतनी खूबसूरत क्यों है......
अनिल

मैंने तो मुहब्बत की है

चुभते हैं बहुत मेरी सूख चुकी आँखों में,
ये ख्वाब काँच के न बने होते, तो क्या हो जाता ,
रात झुक कर सहलाती है मेरे बालों को ,
जागती पलकों के किवाड़ों से नींद भी नहीं आती,
जल चुकी मुहब्बत की नर्म राख के बिछौने पर,
कुछ अरमान सुलगते हैं, कुछ शोले बचे हैं शायद...

यूं ही कटती हैं मेरी रातें, तुम भी जान लो....
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है ......
अनिल

वृक्ष,सकारात्मक जीवन के प्रतिबिंब

वृक्ष धरा पर हैं खड़े ,
ऊर्ध्व गर्वित, सीना ताने,
खिलखिलाते ये सभी मधुमास में ,
अश्रु की धारा बहाते भीगते कुहास में,
पतझड़ों में अपनों ने ही , पृथक हो रुला दिया,
शीघ्र ही नंगे बदन को ,नवकोपलों ने छिपा लिया,
सुख दु:ख सी ऋतुओं में ध्वजा से, रंग बदलते बिम्ब हैं ,
सच कहूँ तो सकारात्मक जीवन के, ये सच्चे प्रतिबिंब हैं .........

अनिल

रात का आसमां जमीं पर

अपने घने बालों के साये से अंधेरा कर दो,
जुगनुओं को आँचल में सितारों सा सजा लो,
तुम्हारा दमकता हुआ चेहरा, चाँद से कम तो नहीं,
रात का आसमां जमीं पर है, मुहब्बत के लिये...
अनिल

मुझको जीने की चाह दे जाओ

दो घड़ी मेरे पास आ जाओ ,
फिर ख्याल और ख्वाब हो जाओ,
इक लम्हें में उम्र गुजरेगी,
मुझको जीने की चाह दे जाओ....
अनिल

ये चिराग मेरे जुगनुओं के क़ातिल हैं

बुझा दो इन चिरागों को मेरे बुझने से पहले,
ये चिराग मेरे जुगनुओं के क़ातिल हैं,
क्या हुआ जो मौजों से बांध टूट गया,
लहर यकीन की सैलाब से मुकाबिल है.....
तुम्हारी बड़ी उम्मीदें, मेरी छोटी ख्वाहिशें.....
अनिल

मौत.. हमसफ़र


जब टूटते हो तुम,
या हारते हो,
मैं तुम्हारे
सबसे करीब होती हूं,
तुम्हारे राेग में,
विषाद में, वियोग में,
शोक में, दोष में,
तुम्हें सहलाती हूँ मैं,
तुम जानकर भी
अजनबी से
रहते हो मुझसे ,
जिस दिन तुम्हें
हारता देखूंगी खुद से,
तुम्हें सदा के लिए,
गले से लगा लूंगी,
जानना चाहते हो तो सुनोंं,
मैं मौत हूँ,
तुम्हारी,
सिर्फ तुम्हारी,
हमसफ़र.... मौत

अनिल कुमार सिंह

जो याद रहा वो तुम

जो भूल गया वो मैं था,
जो याद रहा वो तुम,
स्वप्नों के अंत सफ़र में,
खुद स्वप्न हो गये गुम,
राहों के घुप्प अंधेरे,
तस्वीर तुम्हारी लेकर,
मेरा उपहास उड़ाते,
फिर हो जाते गुमसुम,
जो भूल गया वो मैं था,
जो याद रहा वो तुम....

अनिल

इक बार गले से मिल तो सही

तूं मदहोश पवन का इक झोंका,
मैं बुझता हुआ सा एक दीया,
तूं आकर अभी बुझा दे मुझे,
इक बार गले से मिल तो सही....

तूं सरिता की चंचल धारा ,
मैं उदास किनारा सूखा सा,
मैं टूट के बह जाऊं इस पल,
आ मुझे बहा ले जा तो सही.....
अनिल कुमार सिंह

अब मुझे मुझसे मुहब्बत है

ये हवा, ये नमीं, ये खुशबुए़ं,
यादों के पर्दों पर दोहराते से चित्र,
रात की बाहों से खुले खुले केश,
डबडबाई आँखें में लहराता सागर,
गर्म आहों को समेटे सिसकता हुआ धुआं,
ओह! आज फिर तुम मेरे ख्वाबों में आई,
आज फिर मेरी छलकी हैं आँखें...
न, न छीनों मुझसे मेरी ही साँसें,
अब मुझे मुझसे मुहब्बत है........

अनिल

चांदनी बेताब है

दीवारो पर जागते पर्दों, तुम भी थक गए हो सो जाओ,
चांदनी बेताब है, चुपके से मेरी यादों में घुल जाने को...
अनिल

जीने की हसरतें

चूल्हे की गर्मी के लिए जोड़ों की कसरतें,
राशन के झोले में दबी जीने की हसरतें,
बेइंतजा़मी से कहीं अनाज सड़ रहा है,
जो है जरूरतमंद लाइन में लड़ रहा है,
...........................
............................. अनिल

दर्द के साथी दिखाई नहीं देते

लहराता समुंदर,
ठहरी सी झील,
छलकते प्याले,
सब, ऑंखों में दिखे,
काश! नदी भी समझ सकता कोई,
या कोई झरना,
दर्द के साथी दिखाई नहीं देते .....

अनिल

इक सितारा गुमशुदा ओझल

आसमां तेरे शामियाने में ,
इक सितारा गुमशुदा ओझल,
इस कदर तलाश में उसकी,
कितनें जुगनू भर लिए बाहों में,
गर्म यादों की गर्म आहों से,
बर्फ आंसू पिघल के बहते हैं,
मेरी आँखों चिटके दर्पण में,
ख्वाब कुछ सहमें हुए रहते हैं
कैसे ढूंढें , कहां तलाश करें,
नामालूम वो किस शहर में रहते है....


अनिल कुमार सिंह

जो दृढ़ रहा, अटल रहा

जो दृढ़ रहा, अटल रहा,
जीवन आघात उसी को मिला,
मरूस्थल के पहाड़ों पर
थोर के जंगल होते हैं....
और होते हैं कुछ कंटक वन,
विषधर भी बसेरा करते हैं,
जो अटल रहा, वह अचल रहा,
नहीं झुका, वह नहीं झुका
जीवन संताप किसे न मिला....


अनिल कुमार सिंह